महबूब और चाँद


लोग न जाने क्यों चांद में महबूब का अक्स तलाशते हैं. हक़ीक़त में महबूब का अक्स दहकते सूरज में अया होता है, जो पूरे वजूद को फ़ना कर डालता है. इश्क़ में फ़ना होना ही तो इश्क़ की इंतेहा है.
फ़िरदौस ख़ान
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