कल भी पूरे चांद की रात थी
फ़िरदौस ख़ान
कल भी पूरे चांद की रात थी... हमेशा की तरह ख़ूबसूरत... इठलाती हुई... अंगनाई में खिले सफ़ेद फूल अपनी भीनी-भीनी महक से माहौल को और रूमानी बना रहे थे... नींद आंखों से कोसों दूर थी... पिछले कई दिन से वह दिल्ली से बाहर हैं... रात भर चांद आसमान में मुस्कराता रहा... उसकी दूधिया चांदनी अंगनाई में बिखरी हुई थी... शाख़ें हवा से झूम रही थीं... गर्मी के मौसम के बावजूद हवा में ठंडक थी... बादलों के दूधिया टुकड़े आसमान में कहीं-कहीं तैर रहे थे... लेकिन जिन्हें दिल ढूंढ रहा था, बस वही नहीं थे...
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