स्वरोज़गार


कहते हैं- दूसरे के सिंहासन से अपनी चटाई अच्छी... क्योंकि किसी की जी हुज़ूरी तो नहीं करनी पड़ती...
आज के युवा अपने स्वरोज़गार को तरजीह दे रहे हैं... वाक़ई यह अच्छी बात है... अपना ख़ुद का काम ही ज़्यादा अच्छा होता है, भले ही परचून की दुकान क्यों न हो...  नौकरी में लगी बंधी तनख़्वाह तो होती है, लेकिन इसकी अपनी परेशानियां हैं... नौकरी प्राइवेट हो, तो और भी मुसीबत... हमेशा एक ही बात याद रखनी होती है- बॊस इस ऒलवेज़ राइट... न जॊब की गारंटी होती है, न काम का वाजिब मेहनताना, न पर्याप्त छुट्टियां...

अपने काम में जो मज़ा है, वो किसी की नौकरी में कहां... स्वरोज़गार अपनाओ और ख़ुश रहो ... :)
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1 Response to "स्वरोज़गार"

  1. Unknown says:
    2 मई 2016 को 2:31 am बजे

    नोकरी के बारे में अकबर इलहाबादी का शेर याद आ गया "भरते है मेरी आह को वोह ग्रामोंफोन में। कहते है फ़ीस लिजिये और आह कीजिये।।

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