ज़ख़्म


कहते हैं कि वक़्त हर ज़ख़्म भर देता है... लेकिन कुछ ज़ख़्म ऐसे हुआ करते हैं, जो कभी नहीं भरते...  बस इंसान को उन ज़ख़्मों का दर्द बर्दाश्त करने की आदत पड़ जाती है... वो अपनी तकलीफ़ को अपनी बनावटी मुस्कराहट के पीछे छुपाना सीख लेता है...
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