औरतें, प्रेम, वासना और किंवदंतियां


फ़िरदौस ख़ान
हिन्द पॉकेट बुक्स ने खुशवंत सिंह की अंग्रेज़ी में प्रकाशित नेशनल बेस्ट सेलर पुस्तक को औरतें, सेक्स, लव और लस्ट नाम से प्रकाशित किया है. खुशवंत सिंह के बारे में एक बड़े अख़बार के संपादक ने कहा था-आपने बुलशिट को भी आर्ट में बदल दिया. खुशवंत सिंह कहते हैं कि लोग बुलशिट को भी पढ़ना पसंद करते हैं. इस विचारोत्तेजक पुस्तक को उन्होंने खुलकर बेबाक ढंग से लिखा है. उन्होंने अश्लीलता, पोर्नोग्राफ़ी और इरोटिका में फ़र्क़ बताते हुए इनका विश्लेषण भी किया है. अंदाज़ उनका वही है, बोल्ड. लेखक ने इस विषय पर भारतीय ही नहीं, विदेशी मिथक और किंवदंतियों को शामिल किया है. इसके साथ ही उन्होंने कहानियों और कविताओं का भी सहारा लिया है, जिससे किताब की रोचकता बढ़ गई है.

प्रेम के बारे में खुशवंत सिंह लिखते हैं-पूरे संसार की सभी भाषाओं में केवल प्यार ही एक ऐसा विषय है, जिस पर दिल खोल कर लिखा गया है. कोई भी दूसरा विषय इसके मुक़ाबले नहीं ठहरता, लेकिन फिर भी इसकी परिभाषाएं बहुत ही भ्रामक हैं, क्योंकि यह अपने भीतर इतने भावों को संजोए रहता है, जो अपने आप में एक-दूसरे से अलग होते हैं. एक मनुष्य का अपने बच्चे के लिए स्नेह, बच्चे का मां से लगाव, एक मनुष्य का अपने प्रभु, गुरु और देश से प्रेम, यह सब उस प्रेम से पूरी तरह अलग हैं, जो एक औरत और मर्द को एक-दूसरे का साथ पाने और शारीरिक तौर पर एकाकार होने के लिए लालायित कर देता है. यह आयु, जाति, धन, विद्या और रंग-रूप आदि सभी तरह के मतभेदों को नकार देता है. प्यार में किसी तरह का जोड़-तोड़ नहीं होता, न ही सामाजिक क़ायदे-क़ानूनों और नतीजों से कोई लेना-देना होता है. वास्तविक जीवन में इसकी पूर्ति शारीरिक और भावात्मक संबंध से होती है. तेरहवीं सदी के फ़ारसी कवि जलालुद्दीन रूमी ने कहा है-प्रेम इच्छा रखता है कि उसके रहस्य को प्रकट कर दिया जाए. यदि कोई दर्पण कोई प्रतिबिंब ही नहीं दिखाता, तो उसका लाभ क्या है? प्रेम जीवन का सबसे प्रसन्नतादायक अनुभव है. पंद्रहवीं सदी के रहस्यवादी सू़फ़ी नूरुद्दीन ज़ामी कहते हैं-जिस दिल में प्यार का दर्द नहीं बसता, वह दिल नहीं है. जिस शरीर में प्यार की तड़प नहीं है, वह केवल नींबू और पानी है. यह तत्व ही तो पूरे ब्रह्मांड को गतिशील बनाए रखता है, इसी के नशे में तो सारी दुनिया झूमती है.

पश्चिम के लिए मनुष्य की हेलेन के प्रति इच्छा ही प्रेम का प्रतीक है. पूर्व में यही इच्छा लैला-मजनू की अमर कथा से दर्शाई जाती है. एक दिन मजनू बैठा हाथ से रेत उलीच रहा था. पूछा गया-इन रेत के कणों में क्या तलाशते हो? उसने कहा- मैं लैला को खोजता हूं. तो तुम्हें क्या लगता है कि इस तरह लैला को पा लोगे? उससे पूछा गया. मैं उसे हर जगह, इस उम्मीद में खोजता हूं कि एक न एक दिन, कहीं न कहीं तो पा ही लूंगा.

जब किसी को इश्क़ का रोग लग जाता है, तो उसका सबसे पहला लक्षण यही होता है कि वह बार-बार अपने प्रिय या प्रिया का नाम लेना चाहता है. नाम चाहे कितना भी सामान्य क्यों न हो, प्यार उसे एक जादुई विशेषता दे देता है और व्यक्ति उसे मंत्र की तरह जपना चाहता है. प्रेम के बारे में सबसे यादगार पंक्तियां बाइबिल से मिलती हैं. रूथ की प्रार्थना पर ध्यान दें-मुझे स्वयं से अलग मत होने दो. जहां तुम जाओगे, मैं जाऊंगी. जहां तुम रहोगे, वहीं रहूंगी. तुम्हारे लोग, मेरे लोग होंगे और तुम्हारा ईश्वर, मेरा ईश्वर होगा. जहां तुम मरोगे, वहीं मैं भी मर जाऊंगी और दफ़नाई जाऊंगी. हे ईश्वर, मेरी इतनी विनती सुन लेना और हो सके तो मृत्यु तक मुझे स्वयं से अलग मत होने देना. अंग्रेज़ी में जहां प्रेम को लेकर सुंदर कविताएं रची गईं, वहीं उर्दू में भी ख़ूबसूरत शेअर लिखे गए. मीर तुक़ी मीर कहते हैं-
जैसे नसीम, हर सहर
तेरी ही करूं जुस्तजू
ख़ाना-ब-ख़ाना, दर-ब-दर
शहर-ब-शहर, कूबा-ब-कू
यानी हर सुबह हवा की तरह मैं तुम्हें खोजने निकलता हूं. एक घर से दूसरे घर, एक दर से दूसरे दर, एक शहर से दूसरे शहर और एक गली से दूसरी गली.

प्रेम में लीन प्रेमियों के लिए यह वह समय होता है, जब प्रेमियों को ऐसा लगता है कि वे जीवन से बस यही तो चाहते थे और ईश्वर से मांगने के लिए कुछ बचा ही नहीं. आग़ा हश्र कश्मीरी  के शब्दों में-
सब कुछ ख़ुदा से मांग लिया
तुझ को मांग कर
उठते नहीं हैं मेरे हाथ
इस दुआ के बाद
शायर अपने दिल की दुआ क़ुबूल होने पर, न केवल ख़ुदा बल्कि अपनी माशूक़ा का भी शुक्रिया अदा करता है. मजरूह सुल्तानपुरी कहते हैं-
मुझे सहल हो गईं मंज़िलें
ये हवा के रु़ख बदल गए
तेरा हाथ, हाथ में आ गया
के चिराग़ राहों में जल गए

इसी तरह क्रिस्तो़फ़र मार्लो अपनी प्रेमिका को याद करते हुए लिखते हैं-
तुम्हारा रूप संध्या की बयार से भी मनोहर है
और हज़ारों सितारों की सुंदरता में लिपटा है
सच ही तो है. जब आप प्यार में होते हैं, तो अपने प्रिय के अलावा कुछ सोच तक नहीं पाते हैं. यह एक जुनून बन जाता है और आप अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते. अपने एक सॉनेट में एडमंड स्पेंसर लिखते हैं- एक दिन मैंने उसका नाम रेत पर लिखा, पर एक लहर आई और बहा ले गई. मैंने फिर से उसका नाम लिखा, पर वही हश्र हुआ. ज्वार आया और मेरी मेहनत पर पानी फेर दिया. उसने कहा कि मनुष्य व्यर्थ है. इस तरह किसी नश्वर चीज़ को अमर नहीं बना सकते. मैं तो स्वयं ऐसा ही क्षय चाहूंगी और चाहूंगी कि मेरा नाम भी इसी तरह मिट जाए. मैंने कहा कि ऐसा नहीं होगा. धूल में मिलने के बावजूद तुम्हारा नाम अमर रहेगा. मेरी कविता तुम्हारे गुणों को अमर बना देगी और स्वर्ग तक तुम्हारी कीर्ति होगी. भले ही मौत सारी दुनिया पर क़ब्ज़ा कर ले, किंतु हमारा प्रेम जीवित रहेगा और बाद में जीवन फिर से नवीन होगा.

संस्कृत काव्य में भी लौकिक प्रेम पाया जाता है. रामायण से हमें संदर्भ मिलता है कि प्रेमी इस तथ्य से आनंदित है कि वह उसी हवा में सांस ले रहा है, जिसमें उसकी प्रिया सांस लेती है-
ऐ पवन, तू वहां तक बह कर जा. जहां मेरी प्रिया है. उसे स्पर्श करके आ और फिर मुझे स्पर्श कर. मैं  तेरे माध्यम से उसके कोमल स्पर्श का अनुभव करूंगा और चंद्रमा के प्रकाश में उसका सौंदर्य देखूंगा. ये सब एक प्रेमी के लिए बहुत मायने रखता है. एक व्यक्ति इन्हीं के सहारे जीवित रह सकता है कि वह और उसकी प्रिया एक सी वायु में सांस लेते हैं और एक ही धरती पर वास करते हैं.

भृतहरि स्वीकार करते हैं-
जब कोई युवती अपने दीपक जैसे काले नेत्रों से उसे ढांप देती है, तो पुरुष की विवेचन-क्षमता की उज्जवल ज्वाला दम तोड़ देती है.
यह वास्तव में एक अद्‌भुत-सा एहसास है. यह प्रत्येक आयु के मनुष्य पर कभी न कभी अपना असर दिखाता ही है. प्यार की कोई परिभाषा दे पाना आसान नहीं होता. आप इसे वर्णित करना भी चाहें तो केवल यही कह सकते हैं कि आपको महसूस हो रहा है, आप जिस भावना को अनुभव करने जा रहे हैं, उसे आपने कभी महसूस नहीं किया. यह कोई बहुत सहायक नहीं जान पड़ती तो हम इसके प्रारंभिक लक्षणों पर ध्यान देते हैं. इसका पहला लक्षण यही है कि आप किसी ख़ास इंसान की सोहबत में रहना चाहते हैं. इसके बाद उस व्यक्ति के साथ रहने की इच्छा, उस पर निर्भरता में बदल जाती है. उसके साथ ख़ुशी मिलती है और उसके साथ न होने पर ख़ालीपन का अहसास होता है. निर्भरता की यह अवस्था निश्चित रूप से चाहने वाले की स्थिति बदल देती है. प्रेमी जन अपने प्रेमपात्र की सेवा करने को तत्पर रहते हैं, क्योंकि इस संसार में प्रिय से अधिक प्रिय कोई नहीं होता. बर्नाड शॉ ने इसी भाव को एक प्रेमी और आम आदमी का अंतर कहा है. प्रेमी जन अपनी मर्यादा की परवाह नहीं करते और न ही उन्हें समाज की कोई परवाह होती है. प्यार में दूसरे के साथ लगातार वचनबद्धता निभाने का तत्व शामिल होता है, जिसमें आने वाले ख़तरों की भी गणना नहीं की जाती. प्यार कभी भी, कहीं से भी जीवन में सेंध लगा सकता है. यह धन, राष्ट्रीयता, धर्म और आयु के अंतर को फलांग कर विपरीत जान पड़ते संबंधों में भी हो सकता है. दो लोग एक-दूसरे के लिए खिंचाव क्यों महसूस करते हैं, यह आज तक पहेली बनी हुई है.

बहरहाल, इस किताब में औरत और मर्द की भावनाओं से जु़डी कुछ ऐसी सच्चाइयों के बारे में जानकारी मिलती है, जिन्हें हम जानना नहीं चाहते या फिर उससे मुंह मोड़ लेते हैं. लेकिन हमारे ऐसा करने से हक़ीक़त बदल तो नहीं जाती है. इसलिए ज़रूरी है कि हम इन सच्चाइयों को जानें और उन पर एक बार विचार ज़रूर करें. रिश्तों को बेहतर तरीक़े से निभाने के लिए ऐसा करना ज़रूरी भी है. (स्टार न्यूज़ एजेंसी)


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1 Response to "औरतें, प्रेम, वासना और किंवदंतियां"

  1. विभूति" says:
    3 सितंबर 2013 को 3:14 pm बजे

    BEhtreen post...

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