कलमा...


मेरे मौला !
मेरे मौला !
पहले भी ज़ुबां पर
उनका नाम रहता था...
मगर
अब भी शामो-सहर ज़ुबां पर
कलमे की तरह
उनका नाम ही रहता है...
वो इश्क़े-मजाज़ी था
और
ये इश्क़े-हक़ीक़ी है…
-फ़िरदौस ख़ान 
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