कभी किसी को हक़ीर न समझें...


हर इंसान अपनी हैसियत के हिसाब से अल्लाह की राह में ख़र्च करता है... साहिबे-हैसियत मस्जिदों की तामीरे करवाते हैं, मदरसे खुलवाते हैं, ग़रीब लड़कियों की शादी का ख़र्च उठाते हैं... ग़रीबों के लिए मज़ारों पर खाने की देग़े रखवाते हैं... वो ये सब अल्लाह की ख़ुशी के लिए करते हैं...
लेकिन जो ग़रीब है, वो किसी भूखे को खाना खिला देते हैं, किसी ज़रूरतमंद को कपड़े दे देते हैं... अल्लाह को ख़ुश करने के लिए नफ़ली नमाज़ें पढ़ लेते हैं, नफ़ली रोज़े रख लेते हैं, बिना इस बात की परवाह किए कि कितनी शिद्दत की गर्मी है या सेहत इस क़ाबिल नहीं है कि रोज़ा रखा जा सके...
ठीक इसी तरह इंसान अपनों के लिए भी अपनी हैसियत के हिसाब से ही कुछ करता है... जिसके पास दौलत है, वो दौलत ख़र्च कर सकता है, जिसके पास ओहदा है, वो ओहदे का फ़ायदा पहुंचा सकता है... जिसके पास ताक़त है, वो ताक़त का इस्तेमाल कर सकता है....
लेकिन जिसके पास ये सब नहीं है, जो ख़ुद मज़लूम है, वो सिर्फ़ दुआएं ही दे सकता है... अपने हलक़ का निवाला दे सकता... अपनी मुहब्बत दे सकता है...
इसलिए कभी किसी को हक़ीर न समझें...

तस्वीर गूगल से साभार

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

0 Response to "कभी किसी को हक़ीर न समझें..."

एक टिप्पणी भेजें