सजदा...

मेरे महबूब !
दुनिया
इसे शिर्क कहे
या
गुनाहे-कबीरा
मगर
ये हक़ीक़त है
दिल ने
एक सजदा
तुम्हें भी किया है
और तभी से
मेरी रूह सजदे में है...
-फ़िरदौस ख़ान
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7 Response to "सजदा..."

  1. डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) says:
    24 दिसंबर 2009 को 8:21 pm बजे

    बहुत सुंदर लफ़्ज़ों के साथ.... बहुत सुंदर rachna.....

  2. परमजीत सिहँ बाली says:
    24 दिसंबर 2009 को 9:51 pm बजे

    बहुत सुन्दर!!कहीं बहुत गहरे से निकले शब्द....

  3. Unknown says:
    24 दिसंबर 2009 को 11:20 pm बजे

    सुदंर लाईने हैं, आभार, और ईमान मलेकि की पेंटिंग साथ में लगाकर आपने मजा दुगना कर दिया

  4. शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' says:
    25 दिसंबर 2009 को 1:35 am बजे

    'दिल ने एक सजदा... तुम्हे भी किया है...
    और तभी से.. मेरी रूह सजदे में है'
    आपके
    इस अंदाजे-बयां पर क्या कहा जाये?
    हां, अपना एक शेर याद आ रहा है-
    मांगता रहता हूं इक बुत को खुदा से अकसर
    इश्क ने कैसा 'मुसलमान' बना रखा है???
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

  5. Creative Manch says:
    26 दिसंबर 2009 को 8:06 pm बजे

    kya baat hai
    bahut sundar
    gahre bhaav

    shubh kaamnayen

  6. Unknown says:
    6 मार्च 2010 को 9:04 pm बजे

    दिल ने
    एक सजदा
    तुम्हें भी किया है
    और तभी से
    मेरी रूह सजदे में है...

    सुब्हानअल्लाह.......पाकीज़गी, इबादत और मुहब्बत की इंतिहा.......

  7. Saleem Khan,NEWS 24 says:
    3 अप्रैल 2010 को 8:45 pm बजे

    Is zameen se falak tak
    shayad do hi ghazab ki hain...........
    Ek to aapka likhna...
    aur ek mera parhna....

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