जगह मिलती है हर इक को कहां फूलों के दामन में...
किसी को दुख नहीं होता, कहीं मातम नहीं होता
बिछड़ जाने का इस दुनिया को कोई ग़म नहीं होता
जगह मिलती है हर इक को कहां फूलों के दामन में
हर इक क़तरा मेरी जां क़तरा-ए-शबनम नहीं होता
हम इस सुनसान रस्ते में अकेले वो मुसाफिर हैं
हमारा अपना साया भी जहां हमदम नहीं होता
चरागे-दिल जला रखा है हमने उसकी चाहत में
हज़ारों आंधियां आएं, उजाला कम नहीं होता
हर इक लड़की यहां शर्मो-हया का एक पुतला है
मेरी धरती पे नीचा प्यार का परचम नहीं होता
हमारी ज़िन्दगी में वो अगर होता नहीं शामिल
तो ज़ालिम वक़्त शायद हम पे यूं बारहम नहीं होता
अजब है वाक़ई 'फ़िरदौस' अपने दिल का काग़ज़ भी
कभी मैला नहीं होता, कभी भी नम नहीं होता
-फ़िरदौस ख़ान
7 अगस्त 2008 को 9:57 am बजे
जगह मिलती है हर इक को कहां फूलों के दामन में
हर इक क़तरा मेरी जां क़तरा-ए-शबनम नहीं होता
अजब है वाक़ई 'फ़िरदौस' अपने दिल का काग़ज़ भी
कभी मैला नहीं होता, कभी भी नम नहीं होता
एक से एक बेहतरीन शेरों से सजी इस कामयाब ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल फरमाईये....आप के कलाम में रवानी और जज़्बात में पुख्तगी साफ़ दिखाई देती है....बिला शक आप शायरी में बहुत ऊंचा मुकाम हासिल करेंगी...
नीरज
7 अगस्त 2008 को 10:00 am बजे
चरागे-दिल जला रखा है हमने उसकी चाहत में
हज़ारों आंधियां आएं, उजाला कम नहीं होता
क्या बात है !! बहुत खूब. बहुत अच्छे शेर. उम्दा ग़ज़ल.
7 अगस्त 2008 को 5:49 pm बजे
हम इस सुनसान रस्ते में अकेले वो मुसाफिर हैं
हमारा अपना साया भी जहां हमदम नहीं होता
--बहुत उम्दा, क्या बात है!बहुत बधाई.
21 मार्च 2010 को 8:22 am बजे
nice
21 मार्च 2010 को 8:48 am बजे
हम इस सुनसान रस्ते में अकेले --------
बहुत सुन्दर गज़ल
21 मार्च 2010 को 9:04 am बजे
बहुत शानदार ग़ज़ल.........
उजाला कम नहीं होता .................वाह !
बहुत खूब !
21 मार्च 2010 को 11:35 am बजे
बेहतरीन रचना............
चरागे-दिल जला रखा है हमने उसकी चाहत में
हजारों आंधियां आयें, उजाला कम नहीं होता
...............हर शेर अच्छा है पर मुझे यह सबसे खूबसूरत लगा।