राहुल गांधी को समर्पित एक ग़ज़ल

भारत की मुहब्बत ही इस दिल का उजाला है
आंखों में मेरी बसता एक ख़्वाब निराला है

बेटा हूं मैं भारत का, इटली का नवासा हूं
रिश्तों को वफ़ाओं ने हर रूप में पाला है

राहों में सियासत की, ज़ंजीर है, कांटें हैं
सुख-दुख में सदा मुझको जनता ने संभाला है

धड़कन में बसा मेरी, इस देश की गरिमा का
मस्जिद कहीं, गिरजा कहीं, गुरुद्वारा, शिवाला है

बचपन से ले के अब तक ख़तरे में जां है, लेकिन
दुरवेशों की शफ़क़त का इस सर पे दुशाला है

नफ़रत, जलन, अदावत दिल में नहीं है मेरे
अख़लाक़ के सांचे में अल्लाह ने ढाला है

पतझड़ में, बहारों में, फ़िरदौस नज़ारों में
हर दौर में देखोगे राहुल ही ज़ियाला है
-फ़िरदौस ख़ान

शब्दार्थ : दुरवेश- संत,  शफ़क़त- सहानुभूति, अदावत- शत्रुता, अख़लाक़- संस्कार,  फ़िरदौस- स्वर्ग, ज़ियाला- उजाला



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