फूल और तालाब
फ़िरदौस ख़ान
पानी से भरा एक तालाब था. उसमें एक मेंढक रहता था. तालाब में एक कमल का फूल भी था. तीनों की ज़िन्दगी बहुत अच्छी तरह से गुज़र रही थी. तीनों बहुत ख़ुश थे. मौसम ने करवट ली और सूखा पड़ गया. दूर-दूर तलक बादल का एक टुकड़ा भी नज़र नहीं आता था. ऊपर से शिद्दत की गर्मी पड़ रही थी. तालाब सूखने लगा. मेंढक पानी की तलाश में दूसरी जगह चला गया. तालाब उदास हो गया. उसका साथी बिछड़ गया था, लेकिन वो कर भी क्या सकता था. जाने वाले को कोई रोक सका है भला. तालाब दिनोदिन सूख रहा था. जैसे-जैसे तालाब का पानी कम होने लगा, वैसे-वैसे कमल का फूल भी मुरझाने लगा. तालाब ने उससे कहा कि वह भी यहां से कहीं और चला जाए, वरना एक दिन सूख जाएगा. फूल ने जाने से इंकार कर दिया और कहा- हम साथी हैं, हर हाल में साथ रहेंगे. मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा, जो तुम्हारा हाल होगा, वही मेरा हाल होगा.
एक दिन तालाब सूख गया और उसके साथ-साथ फूल भी सूख गया.
कभी किसी से मुहब्बत करो, तो कमल के फूल की तरह करना. जो तालाब के सूखने के साथ ख़ुद भी सूख जाता है.
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