पानी और मछली


फ़िरदौस ख़ान
एक मछली थी. पानी के एक ज़ार में रहती थी. अकसर वो पानी से कहती-तुम ही मेरी ज़िन्दगी हो. मुझे तुमसे बेपनाह मुहब्बत है. तुम्हारे बिना मैं ज़िन्दगी का तसव्वुर भी नहीं कर सकती. पानी को मछली की बातें सुनकर बहुत ख़ुशी मिलती. वो ख़ुद पर और मछली पर नाज़ करने लगा. गरमी का मौसम शुरू हुआ और गरमी की शिद्दत से ज़ार का पानी सूखने लगा. और एक दिन ज़ार का पानी बहुत कम रह गया. फिर क्या था. मछली छलांग लगाकर दूसरे ज़ार में चली गई, दूसरे पानी के पास.
पहले ज़ार का सूखता पानी उसे देखता रहा. मछली बहुत ख़ुश थी. पानी का वजूद पल-पल ख़त्म हो रहा था, लेकिन वो हर लम्हा मछली को दुआएं दे रहा था. यही तो मुहब्बत है. ख़ुद को मिटाकर भी अपने महबूब के लिए ख़ुशी चाहना.
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