इल्मे-सीना


इल्म दो तरह के हैं... पहला क़ुरआन है, जिसे इल्मे-सफ़ीना (किताबी इल्म) कहा गया है, जो सभी आमो-ख़ास के लिए है... और दूसरा इल्मे-सीना (छुपा इल्म) है, जो सूफ़ियों के लिए है... उनका यह इल्म पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, ख़लीफ़ा अबू बक़्र, हज़रत अली, हज़रत बिलाल और पैग़म्बर के अन्य चार क़रीबी साथियों के ज़रिये एक सिलसिले में चला आ रहा है, जो मुर्शिद से मुरीद को मिलता है... हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इल्म का शहर और हज़रत अली को इल्म का दरवाज़ा कहा जाता है...
इल्मे-सीना किताबों में नहीं मिलता... हम इल्मे-सीना के तालिबे-इल्म हैं... कुछ अरसा पहले हमने इल्मे-सीना से मुताल्लिक़ फ़ेसबुक पर एक पूछा था, लेकिन किसी ने उस सवाल का जवाब नहीं दिया... जो लोग ख़ुद को बड़ा आलिम मानते हैं, उनसे भी हमने इनबॊक्स में पूछा, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई इल्म नहीं है...
हमें अपनी ग़लती का अहसास हुआ कि हमने सवाल पोस्ट करके ग़लत किया... हमने फ़ौरन वो पोस्ट डिलीट कर दी...
 हमारी डायरी से
  • हवा, पानी और खाना जिस्म की ग़िज़ा है, किताबें और इल्म ज़ेहन की ग़िज़ा है, मुहब्बत और इबादत रूह की ग़िज़ा है...
  • सबसे आसान होता है, दूसरों के बनाए रास्तों पर चलना... लेकिन अपनी मंज़िल को पाने के लिए अपनी राह भी ख़ुद ही बनानी होगी... रूह एक मालूम मंज़िल की चाह में नामालूम सफ़र पर है... अंजाम ख़ुदा जाने क्या होगा...



  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

0 Response to "इल्मे-सीना"

एक टिप्पणी भेजें