राहे-हक़


एक बुज़ुर्ग थे. एक रोज़ रात में उन्होंने देखा कि एक फ़रिश्ता हाथ में सुनहरी किताब लिए टहल रहा है. उन्होंने फ़रिश्ते से उस किताब के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि इस किताब में उन लोगों के नाम दर्ज हैं, जो ख़ुदा से मुहब्बत करते हैं.
उन्होंने पूछा कि क्या इस किताब में मेरा नाम है?
फ़रिश्ते ने कहा कि इस किताब में आपका नाम नहीं है.
फिर दूसरे रोज़ रात में बुज़ुर्ग को वही फ़रिश्ता नज़र आया. उसके हाथ में इस बार भी एक सुनहरी किताब थी.
उन्होंने किताब के बारे में सवाल किया, तो फ़रिश्ते ने बताया कि इस किताब में उन लोगों के नाम दर्ज हैं, जो ख़ुदा के बंदों से मुहब्बत करते हैं.
उन्होंने पूछा कि क्या इस किताब में मेरा भी नाम है.
फ़रिश्ते ने बताया कि इस किताब में सबसे ऊपर आपका नाम है.
..............
हमने एक बलॊग राहे-हक़ बनाया है, जिसमें रूहानियत है, ख़ल्के-ख़िदमत का जज़्बा है... ये बलॊग हमने अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद को समर्पित किया है...
आपसे ग़ुज़ारिश है कि इसे ज़रूर देखें, और हमें मशविरा दें कि हम इसे और बेहतर कैसे बना सकते हैं... बलॊग के लिए आपके सुझाव और रूहानियत, इबादत से जुड़ी तहरीरें आमंत्रित हैं.
http://raahe-haq.blogspot.in/
  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

0 Response to "राहे-हक़"

एक टिप्पणी भेजें