बारिश...


बारिश कब की थम चुकी है... आसमान में अब भी काली घटायें छाई हुई हैं... और क्यारियों में उगे सुर्ख़-सफ़ेद गुलाबों की पत्तियों पर बारिश की बूंदें अब भी इठला रही हैं...
एक अरसे बाद अपनी डायरी देखी...

...एक नज़्म...
चंद यादें
ज़िंदगी के आंगन में
खिले सुर्ख़ गुलाबों की तरह
होती हैं
जिनकी भीनी-भीनी ख़ुश्बू
मुस्तक़्बिल तक को महका देती हैं...
-फ़िरदौस ख़ान

हमारी डायरी से
रात से बारिश हो रही है... बारिश में भीगना चाहते हैं... लेकिन तबीयत इजाज़त नहीं दे रही है... आंगन में बरसते पानी को देखकर ही दिल ख़ुश कर लिया... 
  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

0 Response to "बारिश... "

एक टिप्पणी भेजें