हमारा नया ब्लॊग राहे-हक़
बिस्मिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम...
दुनिया के हर मज़हब का मक़सद ख़ुदा को पाना रहा है... सबके तरीक़े जुदा हो सकते हैं, लेकिन मक़सद एक ही है... हाल में हमने राहे-हक़ नाम से एक ब्लॊग बनाया है... इस बलॊग का मक़सद रूहानी सफ़र पर ले जाना है... एक ऐसा सफ़र, जिसकी मंज़िल सिर्फ़ और सिर्फ़ दीदारे-इलाही है...
इस बलॊग में सबसे पहले अल्लाह की पाक किताब क़ुरआन को शामिल किया गया है. हमारी कोशिश रहेगी कि हम अलग-अलग भाषाओं में क़ुरआन के तर्जुमे को इसमें शामिल करें. साथ ही अल्लाह के प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम, अल्लाह के नबियों और वलियों की ज़िन्दगी के वाक़ियात भी पेश करें... इबादत से वाबस्ता इल्म, मसलन नूरानी रातें, दुआओं की फ़ज़ीलत और सुनहरे अक़वाल भी इसमें शामिल करें. फ़िलहाल यह एक शुरुआत है और सफ़र बहुत लंबा है...
आपके पास भी ’राहे-हक़’ के लिए कोई सलाह या प्रकाशन सामग्री हो, तो कमेंट में लिख सकते हैं, इसे भेजने वाले के नाम से शाया कर दिया जाएगा...
सिर्फ़ अपने लिए जिये, तो क्या जिये...
इंसान को कुछ वक़्त ख़िदमते-ख़ल्क के लिए भी निकालना चाहिए...
असल ज़िन्दगी तो वही है, जो दूसरों के काम आए... है न...
इक़बाल साहब के अल्फ़ाज़ में-
मेरी ज़िन्दगी का मक़सद तेरे दीन की सरफ़राज़ी
मैं इसलिए मुसलमां, मैं इसलिए नमाज़ी...
दुनिया के हर मज़हब का मक़सद ख़ुदा को पाना रहा है... सबके तरीक़े जुदा हो सकते हैं, लेकिन मक़सद एक ही है... हाल में हमने राहे-हक़ नाम से एक ब्लॊग बनाया है... इस बलॊग का मक़सद रूहानी सफ़र पर ले जाना है... एक ऐसा सफ़र, जिसकी मंज़िल सिर्फ़ और सिर्फ़ दीदारे-इलाही है...
इस बलॊग में सबसे पहले अल्लाह की पाक किताब क़ुरआन को शामिल किया गया है. हमारी कोशिश रहेगी कि हम अलग-अलग भाषाओं में क़ुरआन के तर्जुमे को इसमें शामिल करें. साथ ही अल्लाह के प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम, अल्लाह के नबियों और वलियों की ज़िन्दगी के वाक़ियात भी पेश करें... इबादत से वाबस्ता इल्म, मसलन नूरानी रातें, दुआओं की फ़ज़ीलत और सुनहरे अक़वाल भी इसमें शामिल करें. फ़िलहाल यह एक शुरुआत है और सफ़र बहुत लंबा है...
आपके पास भी ’राहे-हक़’ के लिए कोई सलाह या प्रकाशन सामग्री हो, तो कमेंट में लिख सकते हैं, इसे भेजने वाले के नाम से शाया कर दिया जाएगा...
सिर्फ़ अपने लिए जिये, तो क्या जिये...
इंसान को कुछ वक़्त ख़िदमते-ख़ल्क के लिए भी निकालना चाहिए...
असल ज़िन्दगी तो वही है, जो दूसरों के काम आए... है न...
इक़बाल साहब के अल्फ़ाज़ में-
मेरी ज़िन्दगी का मक़सद तेरे दीन की सरफ़राज़ी
मैं इसलिए मुसलमां, मैं इसलिए नमाज़ी...
7 अप्रैल 2015 को 12:46 pm बजे
ham muslims me Arabi padhne wale to bahut hai par samajhne wale bahut kam...isliye agar aap apne naye blog par hindi ya english me quran ki aayito ko samjhaye to jyada behtar hoga...