ज़रूरत...


फ़िरदौस ख़ान
एक मासूम बच्चा भूख से बिलख रहा है. लोग देख रहे हैं. कुछ लोगों को उस पर तरस आता है. कोई उसे पुचकारता है. कोई उसे गोद में लेकर प्यार  करता है. कोई उसे झुलाता है. लेकिन बच्चा चुप नहीं होता और मुसलसल ज़ारो-क़तार रोये जा रहा है. कोई ये समझने की कोशिश नहीं करता कि बच्चा क्यों रो रहा है. किसी को इस बात का ज़रा भी अहसास नहीं कि बच्चा भूखा है और उसे दूध की ज़रूरत है. कोई उसे दूध पिलाने के बारे में नहीं सोचता.
ज़िन्दगी में भी अकसर ऐसा ही होता है, हमें जिस चीज़ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, वही नहीं मिलती. और उसके बग़ैर बाक़ी सब चीज़ें बेमानी होकर रह जाती हैं...
...

  • रोज़ा रखने से दूसरों की भूख-प्यास का अहसास होता है... रोज़े से पता चलता है कि भूख और प्यास क्या होती है... भूखा और प्यासा शख़्स ही भूख और प्यास की शिद्दत को महसूस कर सकता है... लेकिन, ज़िन्दगी में भूख-प्यास के अलावा भी बहुत सी ’महरूमियां’ हैं, उन्हें समझने के लिए क्या किया जाता है...? या क्या किया जाना चाहिए... ?
  • जिनके पास मिट्टी के घर तक नहीं, उनका दिल बहिश्त के महलों की बातों से भी नहीं बहल पाता...
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