नज़्म...


वो
मेरी रूह तक को
बरहना करने पर
आमादा है
जिसे
ये हक़ था
मेरी हिफ़ाज़त करता
मेरे सर का
आंचल बनता...
-फ़िरदौस ख़ान
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