बुलंदी...
बुलंदी सबको नसीब नहीं हुआ करती, लेकिन बुलंदी सबको अच्छी लगती है... बुलंदी पर पहुंचना एक ख़्वाब होता है, लेकिन बुलंदी की अपनी हदें हुआ करती हैं, कुछ मजबूरियां हुआ करती हैं... जिनकी वजह से इंसान आम ज़िन्दगी नहीं गुज़ार पाता और छोटी-छोटी ख़ुशियों को तरस जाता है... मिसाल देखें-
लड़के ने लड़की से पूछा : ईदी में क्या लेना है ?
लड़की : हरे कांच की चूड़ियां...
लड़का : मंगा दूंगा
लड़की : नहीं, ख़ुद लाकर देना
लड़का : कहां से लाऊं ?
लड़की : दिल्ली में चूड़ियों की दुकानों की कमी है क्या ?
लड़का : जान ! बहुत मजबूर हूं, क़ाहिरा के बाज़ार से तुम्हें चूड़ियां लाकर दे सकता हूं, लेकिन दिल्ली के बाज़ार में चूड़ियां लेने ख़ुद नहीं जा सकता...
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