मार्मिक कथाओं का बेहतरीन संग्रह


फ़िरदौस ख़ान
बीसवीं सदी के यशस्वी कथाकार कमलेश्वर नई कहानी आंदोलन के शीर्षस्थ स्तंभ थे, जिनकी लेखनी का बड़े-बड़े कथा मर्मज्ञों ने लोहा माना है. उन्होंने दो सौ से ज़्यादा कहानियां लिखीं. हिन्द पॉकेट बुक्स ने उनकी कहानियों को पेपरबैक्स में प्रकाशित करने का सिलसिला शुरू किया है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा पाठकों तक उनकी कहानियां पहुंच सकें. हाल में प्रकाशित कहानी संग्रह एक अश्लील कहानी में कमलेश्वर की कई चर्चित कहानियों को शामिल किया गया है.

इंसान ज़िंदगी में बहुत कुछ चाहता है, जैसे दौलत, इज़्ज़त और शौहरत, लेकिन इन सबके बीच वह सुकून को भूल जाता है. जब वह दुनिया का हर सुख भोग लेता है, तब उसे सुकून की तलाश होती है. और इसी सुकून को पाने के लिए वह न जाने कहां-कहां भटकता है. मगर सुकून बाहर कहीं भी नहीं मिलता, क्योंकि इसे इंसान को अपने भीतर ही खोजना प़डता है. दरअसल, सुकून इंसान को उसके नेक कर्मों की बदौलत ही मिलता है. नीली झील भी एक ऐसी ही कहानी है, जो इंसान को नेक काम करने की नसीहत देती है. हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित कमलेश्वर के कहानी संग्रह एक अश्लील कहानी में संग्रहीत नीली झील में कहानी का एक पात्र महेस पांडे मंदिर बनवाने की बजाय परिंदों को शिकारियों के निशाने से बचाने के लिए नीली झील ख़रीद लेता है. पारबती की ख़्वाहिश थी कि उसका पति महेस पांडे चबूतरे के पास वाला कू़डा़ख़ना ख़रीद ले, क्योंकि वह चबूतरे पर एक मंदिर और उसके पास ही मुसाफ़िरों के लिए एक धर्मशाला बनवाना चाहती थी. मरते वक़्त भी उसने अपने पति से यही वचन लिया था. पारबती की मौत के बाद महेस पांडे ने कुल जमा पूंजी इकट्ठी की और जब पैसे कम पड़ गए, तो उसने गांववालों से मंदिर और धर्मशाला के लिए चंदा एकत्र किया. लेकिन उसके साथ एक वाक़या ऐसा पेश आया कि उसका इरादा बदल गया और उसने मंदिर के लिए जमा पैसा कहीं और लगा दिया. कहानी का यह अंश देखिए, सुबह उठा, तो मन नहीं लगा और वह शांति पाने के लिए झील की ओर चला. झील पर पहुंच कर अपनी लाठी से वह काई को छितराता रहा. सिवार के सूतों को उलझाकर उसने निकाला, नन्हे-नन्हे बीज चुनकर मुंह में डाल लिए और उठकर उधर चला गया, जिस ओर जलमंजरी खिली हुई थी. जलमंजरी के पास से ही दलदल शुरू हो जाता था. नारी की बेल पानी में तारों की तरह बिछी हुई थी और गांठों के पास नन्हे-नन्हे घोंघे चिपके हुए थे. सूत-सी सफ़ेद नन्ही-नन्ही जड़े मछली के उजले पंखों की तरह धीरे-धीरे कांप रही थीं. दलदल में घुसकर उसने जलमंजरी के फूल तोड़े और गुच्छा बनाकर लौटने लगा. सोनापतारी का एक झुंड रात भर चारा खाकर उड़ने ही वाला था कि एक गोली उस पार से छूटी और उड़ते सोनापतारी के झुंड में से एक पक्षी बिलबिलाकर छप्प से झील के बीचों-बीच गिर पड़ा. उसके सोने से पर छितरा गए और नीली झील के ख़ामोश पानी पर एक हलचल हुई. एक क्षण बाद ही लाल ख़ून की एक पतली-सी लकीर पानी पर खिंची और सोनापतारी तैरती हुई उस पार जाने की कोशिश करने लगी. उसके नरम पर फड़फड़ा रहे थे और पानी पर ख़ून की लकीर उसका पीछा कर रही थी. झुरमुट में से शिकारी निकले. उन्होंने देखा, पर वह पक्षी तैरता हुआ उस किनारे निकलकर किसी झाड़ी में दुबक कर ख़ामोश हो गया. शिकारियों ने बहुत खोजा, पर पक्षी नहीं मिला. झील पर मिटती हुई लकीर के बीच एकाध पंख पड़ा था. उसका मन उचाट हो गया. जलमंजरी के फूलों को वहीं फेंककर वह लौट आया. पारबती की याद उसे फिर आई और नीलाम वाले दिन उसने तीन हज़ार की बोली लगाकर चबूतरे के पास वाली ज़मीन नहीं, दलदली नीली झील ख़रीद ली. लोगों की आंखें फट गईं. इसका दिमाग़ ख़राब नहीं हो गया? मंदिर का नाम लेकर इसने धोखा दिया है. रुपया हज़म कर गया है? लेकिन उसने किसी को कोई जवाब नहीं दिया और मन में लगता कि अब तो वह पारबती को भी जवाब नहीं दे सकता. उसके पास जवाब है ही क्या? फागुन आते-आते मेहमान पक्षी उड़ गए. पवनहंस चले गए. सफ़ेद सुरख़ाब अपने घरों में लौट गए.  मुअर, संद, करकर्रा और सरपपच्छी भी चले गए. झील बहुत सूनी हो गई थी, पर महेस पांडे को विश्वास था कि ये फिर हमेशा की तरह अपने झुंडों के साथ कार्तिक-अगहन तक वापस आएंगे. महेस पांडे लिखना-पढ़ना तो जानता नहीं था, बस, झील वाले रास्ते के पहले पेड़ पर उसने एक तख्ती टांग दी थी, जिस पर उसने लिखा था, यहां शिकार करना मना है. और नीचे की पंक्ति थी, दस्तख़त नीली झील का मालिक-महेस पांडे.

कमलेश्वर ने अपने शब्द चित्रण के ज़रिये नीली झील का बेहद मनोहारी वर्णन किया है. कहानी पढ़ते वक़्त ऐसा लगता है कि हम साक्षात सारी घटनाओं को अपने सामने घटित होते हुए देख रहे हैं. वह जनमानस की व्यथा-कथा को मार्मिक शब्दों के माध्यम से अपनी कहानी में इस तरह उतार देते थे कि पढ़ने वाला भावुक हो जाता है. उनके पात्र जीवंत नज़र आते हैं. इस किताब में शामिल अन्य कहानियां नागमणि, गर्मियों के दिन, और कितने पाकिस्तान, एक अश्लील कहानी, जामातलाशी, मुर्दों की दुनिया, आज़ादी मुबारक, रात, औरत और गुनाह, भरे-पूरे-अधूरे, मरियम, रावल की रेल, एक रुकी हुई ज़िंदगी भी मन को छू लेती हैं. दरअसल, बीसवीं सदी के यशस्वी कथाकार कमलेश्वर नई कहानी आंदोलन के शीर्षस्थ स्तंभ थे, जिनकी लेखनी का बड़े-बड़े कथा मर्मज्ञों ने लोहा माना है. बक़ौल कमलेश्वर, नई कहानी के दौर का सुख और विलक्षण अनुभव था, जब कहानियों के साथ और कहानियों की बदौलत चेतना को रेखांकित करने के लिए पाठकों की एक बहुत बड़ी जमात कथा-रचना के जीवंत और मनुष्य-परक उत्सव में शामिल हुई थी. कहानी अपने समय के मनुष्य पर ज़्यादा खरी उतरी थी. अपने समय के यथार्थ और सामान्य-जन के आत्मिक और भौतिक संतापों का सामना किया था.

कमलेश्वर ने दो सौ से ज़्यादा कहानियां लिखीं. हिन्द पॉकेट बुक्स ने कमलेश्वर की कहानियों को पेपरबैक्स में प्रकाशित करने का सिलसिला शुरू किया है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा पाठकों तक ये कहानियां पहुंच सकें. यह किताब इसी सिलसिले का एक हिस्सा है, जो पाठकों को ख़ासी पसंद आएगी.
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