मुतासिर...

इंसान कभी भी, किसी से भी मुतासिर हो सकता है. कोई एक शख़्स होता है, जिसकी शख़्सियत ऐसी हुआ करती है कि वह किसी के भी दिलो-दिमाग़ पर छा जाता है.. लाख कोशिश करने पर भी ज़ेहन ख़ुद को उससे जुदा नहीं कर पाता. किसी शख़्स की कोई एक बात ही तो हुआ करती है, जिसकी वजह से वह हमारे वजूद पर इस क़द्र छा जाता है कि उसके सिवा कुछ और नज़र ही नहीं आता. कब वह हमारे ख़्वाबों में आने लगता है, कब उसका नाम कलमे की तरह हमारी ज़बान पर चढ़ जाता है, कब उसकी तस्वीर हमारी आंखों में बस जाती है, हमें पता ही नहीं चलता. शायद कुछ चीज़ें हमारे अपने अख़्तियार में नहीं हुआ करतीं.

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

1 Response to "मुतासिर..."

  1. संजय भास्‍कर says:
    12 जुलाई 2014 को 4:32 pm बजे

    वाह
    बहुत सुन्दर बात ..कितना कुछ कह दिया इन साधारण से शब्दों में..
    बहुत बढ़िया.

एक टिप्पणी भेजें