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- हमें डायरी लिखने की आदत है... स्कूल के वक़्त से ही डायरी लिख रहे हैं... कुछ साल पहले अंतर्जाल पर भी बलॊग लिखना शुरू किया... शुरुआत हिंदी से की थी... बाद में उर्दू, पंजाबी और अंग्रेज़ी में भी बलॊग लिखने लगे... डायरी लिखना ही नहीं, पढ़ना भी बहुत अच्छा लगता है... अकसर अपनी पुरानी डायरियां पढ़ने बैठ जाते हैं... दरअसल, डायरी ज़िंदगी की एक किताब ही हुआ करती है, जिसके औराक़ (पन्नों) पर हमारी यादें दर्ज होती हैं... वो यादें, जो हमारे माज़ी का अहम हिस्सा हैं...
- डायरी लिखनी चाहिए... डायरी में लिखी गईं ख़ूबसूरत बातें ताज़ा फूलों की तरह होती हैं... जो ख़ुशी देती हैं... हम बरसों से डायरी लिख रहे हैं...
- लिखने से पहले लफ़्ज़ों को जीना पड़ता है... तभी तो उनमें इतना असर पैदा होता है कि वो सीधे दिल में उतर जाते हैं... रूह की गहराई में समा जाते हैं...
- लॊर्ड बायरन की रूमानी कविताएं... कुछ ख़त, एक तस्वीर और बहुत-सी ख़ुशनुमा यादें... माज़ी के संदूक़ में यही सब तो हुआ करता है...
- अल्फ़ाज़ वही हैं, जज़्बात वही हैं...बस उन्हें महसूस करने और बयां करने का सबका तरीक़ा जुदा हुआ करता है...
- कामयाबी और नाकामी के जवाज़ ज़्यादा मुख़्तलिफ़ नहीं हुआ करते... इंसान कामयाब हो जाए, तो जवाज़ उम्दा हो जाते हैं, लेकिन बंदा नाकाम हो जाए, तो वही जवाज़ तोहमत बन जाया करते हैं... कामयाब लोगों की जीवनियां पढ़कर यही समझ में आया...
- इंसान तब नहीं हारता, जब वो हार जाता है... बल्कि वो तब हारता है, जब वो हार मान लेता है... इसलिए हम फिर खड़े होंगे... लड़ेंगे और जीतेंगे...
- बहुत से लोग लफ़्ज़ों के साथ खिलवाड़ करते हैं, कुछ लोग लफ़्ज़ों से खेलते हैं, लेकिन बहुत कम ही लोग लफ़्ज़ों को जीते है...
- बच्चे कितने सच्चे होते हैं... कभी इल्म की झूठी क़सम नहीं खाते... ये क़सम उनके लिए सबसे बड़ी हुआ करती है... बचपन की ख़ूबसूरत यादें...
- विश्वास और अंधविश्वास एक ही चीज़ के दो नाम हैं...हम तो ऐसा ही मानते हैं...
- पेट भरा हो, तो हर चीज़ अच्छी लगती है... इंसान भूखा हो, तो उसे खाने के सिवा कुछ नहीं सूझता...
- वही लफ़्ज़ दिल को छू पाते हैं, जो अपने से लगते हैं... पराई चीज़ कितनी ही बेशक़ीमती और नायाब क्यों न हो, उससे उन्सियत नहीं हो पाती... इसी तरह बनावटी लफ़्ज़ भी दिल को नहीं छू पाते, उन्हें कितने ही क़रीने से क्यूं न सजाया जाए...
- सबसे बड़ा सम्मान... पढ़ने वाले को हमारा लिखा एक भी लफ़्ज़ याद रह गया, तो वही हमारे लिए सबसे बड़ा सम्मान है... एक लेखक को और क्या चाहिए...
- कुछ ऐसा लिखना चाहते हैं, जिसे पढ़ते हुए उम्र बीत जाए, लेकिन तहरीर से नज़र हटाने को दिल न चाहे..
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