विश


अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि हमें टूटते तारे बहुत दिखते हैं... जब भी हम रात में खुले आसमान के नीचे बैठकर स्याह आसमान में चमकते चांद-सितारों को देखते हैं, तो हमें कोई बहुत ही चमकता हुआ तारा अपनी तरफ़ बढ़ता दिखता है... बहुत ही तेज़ी से वो हमारी तरफ़ आता है, उसके आसपास बहुत ही रौशनी होती है... फिर बहुत नीचे आकर वो नज़रों से ओझल हो जाता है... अकसर ऐसा होता है...  घर के फ़र्द कहते हैं कि उन्हें तो कोई टूटता तारा नज़र नहीं आया, फिर तुम्हें ही ये टूटते तारे क्यों दिखते हैं.. इसका जवाब हमारे पास नहीं है...
कहते हैं कि टूटते तारे को देखकर कोई 'विश’ मांगी जाए, तो पूरी ज़रूर होती है... छत पर देर तक जागकर चांद-तारों को निहारना अच्छा लगता है... लेकिन टूटते तारे को देखकर मन दुखी हो जाता है... इसलिए कभी टूटते तारे को देखकर कोई 'विश’ नहीं मांगी... अपनी ख़ुशी के लिए किसी का यूं टूटकर बिखर जाना, कभी दिल ने गवारा नहीं किया... शायद इसीलिए एक 'विश’ आज तक ’विश’ ही रह गई...
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)
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4 Response to "विश"

  1. Neetu Singhal says:
    24 अप्रैल 2014 को 3:56 pm बजे

    बचपन में न हमारा एक घर हुवा करता था जो अब नहीं रहा, उसकी एक बडी सी चौकोर छत थी, गर्मियों मेँ हम उसे जल से सिक्त करते औऱ वहीँ खेलते वहीँ सोते वहीँ पढ़तें वहीँ पड़े रहते थे । वहां से चाँद तारे बड़े सुन्दर दिखाई देते थे, हमने उन्हें गिन कर रखा है.....

  2. ANULATA RAJ NAIR says:
    24 अप्रैल 2014 को 7:43 pm बजे

    मुझे भी लगता है...मुरादों के पूरा होने को तारे की कुर्बानी क्यूँ....

    अनु

  3. Darshan jangra says:
    11 मई 2014 को 11:24 pm बजे

    लिखने से पहले लफ़्ज़ों को जीना पड़ता है... तभी तो उनमें इतना असर पैदा होता है कि वो सीधे दिल में उतर जाते हैं... रूह की गहराई में समा जाते हैं.. बहुत बढ़िया

  4. भारतीय नागरिक - Indian Citizen says:
    12 अक्तूबर 2016 को 11:20 pm बजे

    ओह...

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