ज़िंदगी और मुहब्बत...



  • ज़िंदगी का मौसम भी कभी एक जैसा नहीं रहता... बहार के बाद ख़िज़ा और... ख़िज़ा के बाद बहार आती ही है... कई बार ख़िज़ा ज़िंदगी के आंगन में अरसे तक ठहर जाया करती है... लेकिन बहार का इंतज़ार क़ायम रहता है... 
  • हर रोज़ की तरह आज फिर ज़िंदगी का एक और दिन ख़त्म हो गया... या यूं कहें कि उम्र की किताब का एक और कोरा वर्क़ ज़िन्दगी के अच्छे-बुरे वाक़ियात से भर गया... 
  • एक सुनहरे दिन के बाद स्याह रात आती है... चांदनी रातों के बाद अमावस की अंधेरी रातें आती है... यही क़ुदरत है... इसलिए उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए... 
  • तालीम उन लोगों की ज़िंदगी बदलती है, जो खुले ज़ेहन और रौशन दिमाग़ के होते हैं... वरना ऐसे लोगों की कमी नहीं, जिन्हें देखकर लगता है कि उनकी पढ़ाई पर उनके वालदेन ने पैसा बस बर्बाद ही किया है... ऐसी तालीम का क्या फ़ायदा, जो इंसान को इंसानियत का सबक़ भी न पढ़ा पाए... 
  • इंसान को मालूम ही नहीं होता कि वह चाहता क्या है...? अपनी कुछ ख़्वाहिशों को पूरा करने की जद्दोजहद में वह उम्र गुज़ार देता है... फिर उसे अहसास होता है कि असल में उसे तो यह सब चाहिए ही नहीं था...
  • कई मर्तबा कितना भला लगता है किसी अनजान रास्ते पर चलते जाना, बिना यह परवाह किए कि वह कहां जा रहा है, और कहां नहीं... बस उस अनजानी राह पर चलते जाना है... 
  • जिससे मन जुड़ता है... उससे क़िस्मत क्यों नहीं जुड़ती...? 
  • हर रोज़ की तरह आज फिर ज़िंदगी का एक और दिन ख़त्म हो गया... या यूं कहें कि उम्र की किताब का एक और कोरा वर्क़ ज़िन्दगी के अच्छे-बुरे वाक़ियात से भर गया... 
  • वो सुबह कभी तो आएगी... अकसर इस इंतज़ार में ही उम्र की शाम हो जाती है... 
  • वक़्त के साथ ज़रूरतें... और ज़रूरतों के हिसाब से इंसान की पसंद-नापसंद भी बदलती रहती है... बदलाव तो क़ुदरत का दस्तूर है... 
  • हमेशा से तीन तबक़े रहे हैं... एक सही के साथ होता है... दूसरा ग़लत के साथ... और तीसरे को या तो सही-ग़लत के बारे में कुछ पता नहीं होता... या फिर उसमें इतनी हिम्मत नहीं होती कि वह किसी एक तबक़े के साथ खड़ा हो सके... हमेशा से ऐसा होता रहा है... और आगे भी होता रहेगा...
  • कोई बड़े बंगले में रहता है, कोई छोटे से मकान में... कोई मिट्टी के कच्चे घर में, कोई छप्पर तले, कोई झुग्गी-झोपड़ी में, किसी को अपनी एक अदद छत तक नसीब नहीं है... तो क्या बड़े बंगले में रहने वाले को ख़ुद पर ग़ुरूर होना चाहिए... ? क्या उसे नाज़ करने का कोई हक़ नहीं, जिसके पास रहने के लिए बड़ा बंगला नहीं है... आख़िर में सभी को ख़ाक में ही मिल जाना है... फिर ग़ुरूर किस बात का... और क्यों...? 
  • ज़िंदगी तो फ़ानी है... एक दिन फ़ना हो जाएगी... हम अपनी ज़िंदगी में सिर्फ़ इतना चाहते हैं कि कभी हमारे दम से किसी का अहित न हो... और जब मौत आए, तो दिल पर ये बोझ न हो कि हमने किसी का अहित किया है... बस इतना ही...जो बहुत है एक उम्र के लिए... 
  • ज़िंदगी में कोई मंज़िल हो, तो उम्र का सफ़र कट ही जाया करता है... मंज़िल मिले न मिले...
  • माज़ी अच्छा हो या बुरा... अकसर आंखें नम कर देता है...
  • बचपन से अब तक हमारी एक कैफ़ियत कभी नहीं बदली... हालांकि उम्र के साथ इंसान की बहुत-सी आदतें और पसंद-नापसंद बदलती रहती हैं...बचपन से ही जब भी हम किसी की मौत की ख़बर सुनते हैं, तो उस मरने वाले से जलन महसूस होती है... सोचते हैं कि काश ! उसकी जगह हम होते... ऐसा क्यों है, नहीं जानते... 
  • अपनी ज़िंदगी ख़ुदा को समर्पित कर दो, तो सब मुश्किलें आसान हो जाती हैं... ऐसा लगता है... जैसे बचपन लौट आया हो... क्योंकि बचपन में मांगने की कोई ज़रूरत ही नहीं होती... हमारे बड़ों को पता होता है कि हमें क्या चाहिए... और किसमें हमारी भलाई है... वो हमारी ज़रूरतें पूरी करते ही हैं...
  • नेकी कर, दरिया में डाल... इंसान को हमेशा नेकी करते रहना चाहिए... यानी जब भी किसी मुफ़लिस या मज़लूम की मदद का मौक़ा मिले, उसके काम आ जाना चाहिए... ना जाने ज़िंदगी की किस मुश्किल घड़ी में उसकी दुआएं काम आ जाएं...
  • कुछ सवाल न कभी पूछे जाते हैं... और न ही कभी उनके जवाब दिए जाते हैं... फिर भी बात मुकम्मल हो जाया करती है...
  • काश ! ज़िन्दगी की राह में भी ’यू टर्न’ हुआ करते...
  • एक रोज़ ज़िन्दगी मौत की आग़ोश में सो जाएगी...
  • कांटे... कांटे ही हुआ करते हैं... वो फूलों की जगह कभी नहीं ले सकते... वो न किसी सेहरे के फूल बनते हैं...और न ही उनसे कोई सेज सजाता है...
  • इंसान जब बहुत कुछ कहना चाहता, अकसर तभी ज़ुबान ख़ामोश हुआ करती है... 
  • काश ! उसने हमें पहले ढूंढ लिया होता...
  • ज़िन्दगी के सफ़र में कोई किसी का साथ नहीं निभाता... सबको अपने-अपने हिस्से का सफ़र अकेले ही तय करना होता है...
  • रूह जाविदां है, दाइमी है... फिर भी लोग चेहरों में उलझ जाया करते हैं... जिस्मानी ख़ूबसूरती तो कुछ वक़्त के लिए ही होती है, असल ख़ूबसूरती तो दिल की हुआ करती है, रूह की हुआ करती है...
  • हर ख़्वाब की ताबीर नहीं होती, लेकिन वो आंखों में बसते तो हैं... तुम भी तो एक ख़्वाब ही हो...
  • आज कुछ टूट कर बिखर गया... टूटना बुरा होता है और बिखरना उससे भी ज़्यादा बुरा...
  • इंसान कहीं भी जाए, वापस अपने घर ही आता है... फ़िक्र तो उसकी हुआ करती है, जिसका घर नहीं होता... 
  • शायद, कुछ लोग अज़ाब झेलने के लिए ही इस दुनिया में आते हैं...
  • ज़िन्दगी में अगर मुहब्बत शामिल हो, तो इंसान को सलीब पर टंगी ज़िन्दगी भी उतनी बुरी नहीं लगती...
  • काश ! हम अपनों की सारी तकलीफ़ अपनी ऊपर ले लिया करते, तो कितना अच्छा होता...
  • कुछ लोग ऐसे हुआ करते हैं, जिनसे मिलकर ज़िंदगी ख़ुशनुमा हो जाती है...
  • इंसान मिटने के बाद ही संवरता है, जैसे जिस्मानी मौत के बाद रूहानी ज़िन्दगी मिलती है...
  • दुनिया की नज़र में इंसान सिर्फ़ एक बार मरता है, जबकि हक़ीक़त में वो कई मर्तबा मरता है...
  • ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा तकलीफ़ भी वही देता है, जिसे ये मालूम होता है कि आपकी ज़िन्दगी में उसके सिवा कुछ भी नहीं है...
  • ज़िन्दगी में मुहब्बत हो, तो ज़िन्दगी सवाब होती है... 
  • अक़ीदत और मुहब्बत के मामले में दिल की ही जीत हुआ करती है...
  • जो शख़्स ख़ुद टूटा हुआ, बिखरा हुआ है, वो किसी को क्या ख़ुशी देगा...
  • इंसान जब किसी से बहुत ज़्यादा मुहब्बत करने लगता ह, तो वो उसे खोने से डरता है... अकसर यही डर शंका की वजह बन जाया करता है...
  • लड़की डूब रही है... उसकी सांसें अब थमने लगी हैं... हर तरफ़ सिर्फ़ पानी ही पानी है... दूर-दूर तलक कहीं कोई किनारा नज़र नहीं आ रहा है... 
  • कुछ चीज़ों का वजूद शायद नामुकम्मल रहने में ही है...
  • अमूमन, हक़ीक़त में ज़िन्दगी बेरंग ही हुआ करती है... रंग-बिरंगे तो सिर्फ़ ख़्वाब ही हुआ करते हैं...
  • वो लोग ख़ूबसूरत होते हैं, जिनकी आंखों में मुहब्बत होती है, जिनकी बातों में मिठास होती हैं... और इस ख़ूबसूरती के लिए ब्यूटी पार्लर जाने की ज़रूरत नहीं...
  • कुछ लोगों को क़तरा-क़तरा भी नहीं मिलती ’ज़िन्दगी’...
  • कहते हैं- सब्र का फल मीठा होता है...लेकिन ज़्यादा सब्र करने से अकसर फल सड़ भी जाते हैं...
  • कुछ लम्हे ऐसे हुआ करते हैं, जब लगता है कि सबकुछ पा लिया... मगर अगले ही पल अहसास होता है कि कुछ मिलने से पहले ही सबकुछ खो गया...
  • जहां मुहब्बत हुआ करती है, वहां फिर किसी और चीज़ के लिए जगह ही नहीं रहती...
  • वो ख़ुदा तो नहीं, मगर उसे देखकर कलमा पढ़ने को जी चाहता है...
  • ज़िन्दगी ! तुझसे इतने बेज़ार पहले तो कभी न थे...
  • मेरी ज़िन्दगी वो गुमशुदा ख़त है, जिसका पता तुम हो...
  • ज़िन्दगी में ऐसा भी मु़क़ाम आता है, जब किसी से कोई शिकायत नहीं रहती...
  • कुछ वाक़ियात, कुछ लोग और कुछ बातें इंसान की ज़िंदगी बदल दिया करती हैं...
  • गुज़श्ता साल के साथ कई ऐसी चीज़ें घर से बाहर कर दीं, जिनसे हमेशा तकलीफ़ होती थी, चुभन होती थी... नये साल में कुछ अच्छा होगा या नहीं,  ये नहीं जानते... हां, इतना ज़रूर मालूम है कि अब पुरानी चीज़ें तकलीफ़ नहीं देंगी, चुभन नहीं देंगी...
  • कई बार मौत से मिलने को बहुत जी चाहता है... जी चाहता है कि उसकी गोद में सर रखकर सो जाएं, फिर कभी न उठने के लिए...
  • ज़िन्दगी... एक ऐसा सफ़र है, जिसकी मंज़िल ’मौत’ है...
  • कई बार मौत से मिलने को बहुत जी चाहता है... जी चाहता है कि उसकी गोद में सर रखकर सो जाएं, फिर कभी न उठने के लिए...
  • ज़िन्दगी की राह में जो लोग छूट जाते हैं, फिर वो कभी नहीं मिलते... क्योंकि ज़िन्दगी के रास्ते पर कभी यू टर्न नहीं होता...
  • सच के साथ तपते रेगिस्तान में गुज़ारे गए चंद लम्हे, झूठ के गुलिस्तां में गुज़ारी गई लम्बी उम्र से कहीं बेहतर हैं...
  • हर इंसान की अपनी अक़ीदत हुआ करती है... और हर इंसान को अपनी अक़ीदत के साथ ज़िन्दगी गुज़ारने का पूरा हक़ है... हमें दूसरों की अक़ीदत की इज़्ज़त करनी चाहिए...हमने यही सीखा है... 
  • ज़िन्दगी के सफ़र में फूल और कांटे दोनों ही मिला करते हैं... फूलों को अपने दामन में समेट लेना चाहिए और कांटों को माज़ी में दफ़न कर देना चाहिए... ज़िन्दगी, मुसलसल आगे बढ़ते रहने का ही नाम है... कहीं ठहर जाने से ज़िन्दगी की रफ़्तार कम तो नहीं हो जाती... फिर क्यों ख़ुद को मज़ीद अज़ाब में झोंका जाए...
  • कुछ सफ़र ऐसे हुआ करते हैं, जिनकी कोई मंज़िल नहीं होती... इसलिए किसी भी राह पर सोच-समझकर ही क़दम बढ़ाना चाहिए... ज़िन्दगी में ऐसा भी होता है, रास्ते तो मिल जाते हैं, लेकिन मंज़िलें खो जाया करती हैं...
  • कुछ लोग भले ही जहां में रौशनी बिखेरते रहें, लेकिन उनकी अपनी ज़िन्दगी का अंधेरा कभी नहीं छंटता... 
  • उम्र की रहगुज़र में न जाने कितने बियांबान आते हैं, जिनमें अकसर ज़िन्दगियां खो जाया करती हैं... 
  • जब इंसान के नसीब में ख़ुशी न हो, तो ग़ैरों को फूल बांटने ’अपने’ भी नश्तर ही चुभोते हैं... और नेक आमाल के हामी रोज़े में भी दिल दुखाने से बाज़ नहीं आते...
  • ज़िन्दगी भी अजीब शय है... दुश्वारियां जीने नहीं देतीं और दुआएं मरने नहीं देतीं...
  • जो इंसान कमज़ोर लम्हों में किसी को अपना समझकर उसे अपनी ज़िन्दगी की महरूमियों की सच्चाइयां सौंप देता है, बाद में उसे बहुत पछताना पड़ता है...
  • कहते हैं- दुआओं से तक़दीरें बदल जाया करती हैं... काश ! हमारे लिए भी किसी ने ऐसे ही कोई दुआ की होती...
  • वो दुआएं कौन-सी हुआ करती हैं, जो आसमानों से हक़ीक़त बनकर उतर आती हैं... 
  • ज़िन्दगी में ऐसा भी मु़क़ाम आता है, जब किसी से कोई शिकायत नहीं रहती...
  • कुछ यादें जीने का सहारा हुआ करती हैं...
  • मुहब्बत न हो तो ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं... मुहब्बत क़ल्ब का सुकून है, रूह की राहत है...
  • मेरे महबूब ! तुम होते, तो ज़िन्दगी ख़ाक न होती...
  • तुम मेरी इबादतों में शामिल हो... मेरी दुआओं का मरकज़ हो...
  • ज़िन्दगी में दो तरह के लोग मिला करते हैं... पहले जो हमें ये बताते हैं कि हम उनके लिए कितने ख़ास हैं... ऐसे लोग ज़िन्दगी से मुहब्बत करना सिखाते हैं, ज़िन्दगी को भरपूर जीने का सलीक़ा बताते हैं... इनसे मिलकर ज़िन्दगी से मुहब्बत हो जाती है... दूसरी तरह के लोग हमें ये बताते हैं कि उनके पास हमसे भी ज़्यादा चाहने वाले लोग हैं... ऐसे लोग ज़िन्दगी के लिए बेरुख़ी पैदा कर देते हैं... इनसे मिलकर लगता है कि ज़िन्दगी कितनी बेमानी है...
  • कहते हैं कि ज़िन्दगी कभी किसी के लिए नहीं रुकती... लेकिन हक़ीक़त में ऐसा नहीं है, ज़ाहिरी तौर पर भले ही ज़िन्दगी मुतासिर दिखाई न दे, लेकिन हक़ीक़ी तौर पर ज़िन्दगी, ज़िन्दगी कहां रह जाती है... घर के बाहर त्यौहार की रौनक़ें हैं, लेकिन घर के अंदर वही उदासियों का डेरा है...क्या ऐसे भी कोई त्यौहार मनाता है...
  • ज़िन्दगी ज़हर से भी ज़हरीली हो सकती है, कभी सोचा न था.
  • मेरी ज़िन्दगी वो गुमशुदा ख़त है, जिसका पता तुम हो...
  • कुछ लोगों की क़िस्मत में अज़ाब... अज़ाब... और सिर्फ़ अज़ाब ही लिखा होता है...
  • ज़िन्दगी में ऐसा भी वक़्त आया करता है, जब इंसान को न किसी ख़ुशी की चाह होती है और न ही किसी ग़म का ख़ौफ़...
  • ज़िन्दगी में कुछ ख़ालीपन ऐसा भी हुआ करता है, जिसे कोई नहीं भर पाता... लफ़्फ़ाज़ी से कुछ देर के लिए दिल बहलाया तो जा सकता है, लेकिन अधूरेपन को दूर नहीं किया जा सकता...
  • ख़ुशियां सबके नसीब में नहीं हुआ करतीं... कुछ लोग ऐसे भी हुआ करते हैं, जो एक ख़ुशी तक को तरस जाते हैं...
  • इंसान इस दुनिया में ख़ाली हाथ आया था... और ख़ाली हाथ ही उसे चले जाना है... बस उम्र के इस सफ़र में उसे कुछ यादें छोड़ जानी हैं...
  • लड़की को आधी-अधूरी चीज़ें अच्छी नहीं लगती थीं... लेकिन उसे ज़िन्दगी आधी-अधूरी ही मिली...
  • ज़िन्दगी की किताब के कुछ वर्क़ उन काग़ज़ों की तरह हुआ करते हैं, जिन्हें हवा के झोंके अपने साथ उड़ाकर ले जाते हैं... न जाने किस सिफ़्त, अनजान जगहों पर... जहां के नाम पते भी बेगाने हुआ करते हैं... 
  • सुबह का सूरज ऐसा है, मानो किसी ने आसमान के माथे पर सिंदूरी बिंदिया लगा दी हो...
  • रंग ज़िन्दगी का जश्न हुआ करते हैं... फिर क्यूं न रंगों से मुहब्बत की जाए... हमें रंगों से शदीद मुहब्बत है... लाल, हरा, नीला, पीला, सफ़ेद, गुलाबी, आसमानी... और वो हर रंग जिसमें ख़ुशनुमा ज़िन्दगी का अक्स नज़र आता है, हमें ख़ूब भाता है... ऐ ज़िन्दगी ! तू हमेशा ऐसी ही रहना... रंग-बिरंगी...
  • अकसर ऐसा भी होता है कि वक़्त ठहर जाता है... न जाने किसके इंतज़ार में... 
  • आज कितना प्यारा दिन है... भरा-भरा दिन... नीला आसमान, सुनहरी धूप और चहकते परिन्दे... आज सबकुछ कितना भला लग रहा है... 



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2 Response to "ज़िंदगी और मुहब्बत..."

  1. विभूति" says:
    26 दिसंबर 2013 को 9:25 pm बजे

    खुबसूरत अभिवयक्ति.....

  2. Bhargave Dairy says:
    26 दिसंबर 2013 को 9:48 pm बजे

    nice dairy

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