शरारे बनके बरसते हैं अब इंतज़ार के फूल...फ़िरदौस ख़ान
सिसकती वादियां कहती हैं देवदारों से
शरारे बनके बरसते हैं अब इंतज़ार के फूल... (नामालूम)
सच...इंतज़ार की भी अपनी ही ख़ुशी और अपना ही ग़म होता है...यह ख़ुशी और ग़म... इस बात पर निर्भर करता है कि इंतज़ार किसका किया जा रहा है... ? फ़िलहाल एक गुज़ारिश पर अपनी ग़ज़ल पेश कर रहे हैं... अनुराग मुस्कान साहब की एक तस्वीर के साथ, जो कई बरस पहले उन्होंने हमारी एक नज़्म के लिए भेजी थी...
ग़ज़ल
लुत्फ़ जब भी किसी मंज़र का उठाया हमने
दिल को बेचैन-सा वीरान सा पाया हमने
आज फिर याद किया धूप में जलकर उसको
आज फिर छत पे वही ख़्वाब बुलाया हमने
हादसा आज अचानक वही फिर याद आया
कितनी मुश्किल से जिसे दिल से भुलाया हमने
नर्म झोंके की तरह दिल को जो छूकर गुज़रा
ग़म उसी शख़्स का ताउम्र उठाया हमने
जिसको ठुकरा दिया 'फ़िरदौस' जहां ने, उसको
अपने गीतों में सदा ख़ूब सजाया हमने
-फ़िरदौस ख़ान
तस्वीर : अनुराग मुस्कान
24 नवंबर 2010 को 4:33 pm बजे
लुत्फ़ जब भी किसी मंज़र का उठाया हमने
दिल को बेचैन-सा वीरान सा पाया हमने
आह!!!क्या खूब कहा है
आज फिर याद किया धूप में जलकर उसको
आज फिर छत पे वही ख़्वाब बुलाया हमने
एक मंज़र जैसे आंखों मे उतर आया हो
नर्म झोंके की तरह दिल को जो छूकर गुज़रा
ग़म उसी शख्स का ताउम्र उठाया हमने
उफ़!दर्द से लबरेज़ अल्फ़ाज़ दिल मे चुभ गये।
24 नवंबर 2010 को 4:40 pm बजे
शुक्रिया वन्दना जी!
एक दर्द का रिश्ता ही ऐसा होता है, जो हमेशा साथ निभाता है...आप खुद निभाना चाहें या न चाहें...
24 नवंबर 2010 को 4:47 pm बजे
नर्म झोंके की तरह दिल को जो छूकर गुज़रा
ग़म उसी शख्स का ताउम्र उठाया हमने ।
बहुत ही सुन्दरता से व्यक्त किया है हर शब्द में हर भाव को ।
24 नवंबर 2010 को 4:48 pm बजे
जिसको ठुकरा दिया 'फ़िरदौस' जहां ने, उसको
अपने गीतों में सदा ख़ूब सजाया हमने...........अब इस दर्द के निहितार्थ तो मुझे नहीं मालूम...लेकिन फ़िर भी यह कहना चाहूँगा शायरा को कि 'एक चेहरे की नाराजगी से दर्पण नहीं मरा करता है'....इंतज़ार ज़रूर कीजिये, तवीयत से कीजिये, लेकिन इंतज़ार करते रहने लायक खुद को बनाये रखने की ऊर्जा भी यूं ही नहीं मिल जाती. उसके लिए भी जीना ही पड़ता है. हो सकता है कि शायर किसी दुसरे का इंतज़ार खत्म करवा कर अपने लिए इंतज़ार करते रहने लायक ऊर्जा प्राप्त करती रहे...बहरहाल.
बहुत अच्छे अलफ़ाज़...दर्द के समंदर को पार कर लिखा गया कलाम....बहोऊत खूब....बधाई.
24 नवंबर 2010 को 4:48 pm बजे
जिसको ठुकरा दिया 'फ़िरदौस' जहां ने, उसको
अपने गीतों में सदा ख़ूब सजाया हमने...........अब इस दर्द के निहितार्थ तो मुझे नहीं मालूम...लेकिन फ़िर भी यह कहना चाहूँगा शायरा को कि 'एक चेहरे की नाराजगी से दर्पण नहीं मरा करता है'....इंतज़ार ज़रूर कीजिये, तवीयत से कीजिये, लेकिन इंतज़ार करते रहने लायक खुद को बनाये रखने की ऊर्जा भी यूं ही नहीं मिल जाती. उसके लिए भी जीना ही पड़ता है. हो सकता है कि शायर किसी दुसरे का इंतज़ार खत्म करवा कर अपने लिए इंतज़ार करते रहने लायक ऊर्जा प्राप्त करती रहे...बहरहाल.
बहुत अच्छे अलफ़ाज़...दर्द के समंदर को पार कर लिखा गया कलाम....बहोऊत खूब....बधाई.
24 नवंबर 2010 को 4:48 pm बजे
जिसको ठुकरा दिया 'फ़िरदौस' जहां ने, उसको
अपने गीतों में सदा ख़ूब सजाया हमने...........अब इस दर्द के निहितार्थ तो मुझे नहीं मालूम...लेकिन फ़िर भी यह कहना चाहूँगा शायरा को कि 'एक चेहरे की नाराजगी से दर्पण नहीं मरा करता है'....इंतज़ार ज़रूर कीजिये, तवीयत से कीजिये, लेकिन इंतज़ार करते रहने लायक खुद को बनाये रखने की ऊर्जा भी यूं ही नहीं मिल जाती. उसके लिए भी जीना ही पड़ता है. हो सकता है कि शायर किसी दुसरे का इंतज़ार खत्म करवा कर अपने लिए इंतज़ार करते रहने लायक ऊर्जा प्राप्त करती रहे...बहरहाल.
बहुत अच्छे अलफ़ाज़...दर्द के समंदर को पार कर लिखा गया कलाम....बहोऊत खूब....बधाई.
24 नवंबर 2010 को 4:49 pm बजे
जिसको ठुकरा दिया 'फ़िरदौस' जहां ने, उसको
अपने गीतों में सदा ख़ूब सजाया हमने...........अब इस दर्द के निहितार्थ तो मुझे नहीं मालूम...लेकिन फ़िर भी यह कहना चाहूँगा शायरा को कि 'एक चेहरे की नाराजगी से दर्पण नहीं मरा करता है'....इंतज़ार ज़रूर कीजिये, तवीयत से कीजिये, लेकिन इंतज़ार करते रहने लायक खुद को बनाये रखने की ऊर्जा भी यूं ही नहीं मिल जाती. उसके लिए भी जीना ही पड़ता है. हो सकता है कि शायर किसी दुसरे का इंतज़ार खत्म करवा कर अपने लिए इंतज़ार करते रहने लायक ऊर्जा प्राप्त करती रहे...बहरहाल.
बहुत अच्छे अलफ़ाज़...दर्द के समंदर को पार कर लिखा गया कलाम....बहुत खूब....बधाई.
24 नवंबर 2010 को 4:50 pm बजे
जिसको ठुकरा दिया 'फ़िरदौस' जहां ने, उसको
अपने गीतों में सदा ख़ूब सजाया हमने...........अब इस दर्द के निहितार्थ तो मुझे नहीं मालूम...लेकिन फ़िर भी यह कहना चाहूँगा शायरा को कि 'एक चेहरे की नाराजगी से दर्पण नहीं मरा करता है'....इंतज़ार ज़रूर कीजिये, तवीयत से कीजिये, लेकिन इंतज़ार करते रहने लायक खुद को बनाये रखने की ऊर्जा भी यूं ही नहीं मिल जाती. उसके लिए भी जीना ही पड़ता है. हो सकता है कि शायर किसी दुसरे का इंतज़ार खत्म करवा कर अपने लिए इंतज़ार करते रहने लायक ऊर्जा प्राप्त करती रहे...बहरहाल.
बहुत अच्छे अलफ़ाज़...दर्द के समंदर को पार कर लिखा गया कलाम....बहुत खूब....बधाई.
24 नवंबर 2010 को 4:52 pm बजे
आज फिर याद किया धूप में जलकर उसको
आज फिर छत पे वही ख़्वाब बुलाया हमने
बहुत सुन्दर गजल प्रस्तुति... आभार
24 नवंबर 2010 को 4:53 pm बजे
लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी को सलाम पेश करते हैं.
आपको हुस्न व कलाम की मलिका कहना ज़्यादा मुनासिब रहेगा.
इसी को कहते हैं-beauty with brains
हमें आपका कलाम किसी आयतों की तरह याद है.
बस यूं ही लिखती रहा करें. बेसब्री से आपके कलाम का इंतज़ार रहते है.
24 नवंबर 2010 को 4:59 pm बजे
इस दोस्त की एक गुज़ारिश है- किसी ऐसे इंसान का इंतज़ार मत कीजिएगा. जो आपके लायक़ ही न हो.
बहरहाल आपके लिए तो कोई 7 जन्म भी इंतज़ार कर सकता है.
24 नवंबर 2010 को 5:14 pm बजे
आदरणीय फ़िरदौस ख़ान जी
नमस्कार !
बहुत सुन्दर गजल प्रस्तुति...... आभार
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
24 नवंबर 2010 को 6:01 pm बजे
आज फिर याद किया धूप में जलकर उसको
आज फिर छत पे वही ख़्वाब बुलाया हमने
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ है ..बहुत ही खूबसूरती से अहसासों को पिरोया है आपने.
24 नवंबर 2010 को 6:12 pm बजे
हादसा आज अचानक वही फिर याद आया
कितनी मुश्किल से जिसे दिल से भुलाया हमने
सही मायने में आपने भूली बातों याद करा दिया
dabirnews.blogspot.com
24 नवंबर 2010 को 6:28 pm बजे
लुत्फ़ जब भी किसी मंज़र का उठाया हमने
दिल को बेचैन-सा वीरान सा पाया हमने
बहुत ही बेहतरीन अश`आर.... बेहतरीन ग़ज़ल...
24 नवंबर 2010 को 7:27 pm बजे
वाह जी बस दिल को छू गयी
24 नवंबर 2010 को 8:06 pm बजे
हादसा आज अचानक वही फिर याद आया
कितनी मुश्किल से जिसे दिल से भुलाया हमने
दिल को छूने वाली, खूबसूरत और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
24 नवंबर 2010 को 8:36 pm बजे
नर्म झोंके की तरह दिल को जो छूकर गुज़रा
ग़म उसी शख्स का ताउम्र उठाया हमने
bahut sundar panktiyan..
24 नवंबर 2010 को 8:47 pm बजे
khoobsurat ghazal, ye do sher kuch khaas lage.
लुत्फ़ जब भी किसी मंज़र का उठाया हमने
दिल को बेचैन-सा वीरान सा पाया हमने
आज फिर याद किया धूप में जलकर उसको
आज फिर छत पे वही ख़्वाब बुलाया हमने
24 नवंबर 2010 को 9:41 pm बजे
आज फिर याद किया धूप में जलकर उसको
आज फिर छत पे वही ख़्वाब बुलाया हमने
बहुत खूबसूरत शेर...
नर्म झोंके की तरह दिल को जो छूकर गुज़रा
ग़म उसी शख्स का ताउम्र उठाया हमने
क्या बात है...वाह
पूरी ग़ज़ल उम्दा है.
25 नवंबर 2010 को 6:40 am बजे
सुन्दर गजल !
25 नवंबर 2010 को 10:55 am बजे
बहुत ही कमाल की रचना लिखी है आपने
आपको बधाई
25 नवंबर 2010 को 11:51 am बजे
लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी को सलाम पेश करते हैं.
आपको हुस्न व कलाम की मलिका कहना ज़्यादा मुनासिब रहेगा.
इसी को कहते हैं-beauty with brains
हमें आपका कलाम किसी आयतों की तरह याद है.
हमारा भी यही मानना है बस यूं ही लिखती रहा करें. बेसब्री से आपके कलाम का इंतज़ार रहते है.
25 नवंबर 2010 को 11:53 am बजे
आज फिर याद किया धूप में जलकर उसको
आज फिर छत पे वही ख़्वाब बुलाया हमने
नर्म झोंके की तरह दिल को जो छूकर गुज़रा
ग़म उसी शख्स का ताउम्र उठाया हमने
बहुत खूबसूरत.......
25 नवंबर 2010 को 11:53 am बजे
छुटकी
बहुतै उम्दा लिखी हो
25 नवंबर 2010 को 11:54 am बजे
आप जितनी ख़ूबसूरत हैं.......आपका कलाम भी उतना ही ख़ूबसूरत है.......
25 नवंबर 2010 को 12:44 pm बजे
नर्म झोंके की तरह दिल को जो छूकर गुज़रा
ग़म उसी शख्स का ताउम्र उठाया हमने
जिसको ठुकरा दिया 'फ़िरदौस' जहां ने, उसको
अपने गीतों में सदा ख़ूब सजाया हमने
बहुत खूबसूरती से एहसासों को सजाया है ...बहुत खूब ...दर्द भी कितना खूबसूरत होता है ..
26 नवंबर 2010 को 1:27 pm बजे
gazab ka likha hai .wah.
27 नवंबर 2010 को 11:38 am बजे
बहुत अच्छी उम्दा रचना !कहते है की इंतजार का फल मीठा होता है ................
27 नवंबर 2010 को 11:45 am बजे
बहुत अच्छी उम्दा रचना !कहते है की इंतजार का फल मीठा होता है ................
29 नवंबर 2010 को 9:25 am बजे
इस बार मेरे ब्लॉग में '''''''''महंगी होती शादिया .............
2 दिसंबर 2010 को 3:46 pm बजे
bahut hi khoobsorat gazal badhai
20 दिसंबर 2010 को 3:35 pm बजे
लुत्फ़ जब भी किसी मंज़र का उठाया हमने
दिल को बेचैन-सा वीरान सा पाया हमने
Wonderful... kya baat hai !!!!!!!!
22 दिसंबर 2010 को 11:21 pm बजे
बेहद खूबसूरत गजल कही आपने
21 फ़रवरी 2012 को 9:05 am बजे
बहोत बढीया
21 फ़रवरी 2012 को 2:59 pm बजे
sundr rchna bdhai
2 सितंबर 2013 को 8:23 am बजे
वाह बहुत सुंदर ,