इश्क़ की नज़्म...


मैं
उम्र के काग़ज़ पर
इश्क़ की नज़्म लिखती रही
और
वक़्त गुज़रता गया
मौसम-दर-मौसम
ज़िन्दगी की तरह...
-फ़िरदौस ख़ान


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10 Response to "इश्क़ की नज़्म..."

  1. vandana gupta says:
    23 अगस्त 2010 को 1:40 pm बजे

    वक्त ऐसे ही गुजर जाता है
    कब कैसे पता भी नही चलता
    बस खाली पन्ने हाथे मे
    रह जाते हैं बेनूर से
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

  2. शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' says:
    23 अगस्त 2010 को 2:00 pm बजे

    उम्र के क़ाग़ज़ पर...
    इश्क़ की नज़्म...
    वक़्त का
    मौसम दर मौसम
    ज़िन्दगी की तरह गुज़रना...
    वाह...बहुत ख़ूब....मुबारकबाद...

    लेकिन
    ये अल्फ़ाज़ कुछ कम नहीं है?

  3. रेखा श्रीवास्तव says:
    23 अगस्त 2010 को 2:18 pm बजे

    चंद लाइनों में कह दी पूरी किताब की बातें. बहुत सुन्दर भाव और शब्द.

  4. شہروز says:
    23 अगस्त 2010 को 4:32 pm बजे

    behad khoobsoorat nazm !

    अच्छी रचना!!!!!!!!!!!!! क्या अंदाज़ है बहुत खूब

    रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकानाएं !
    समय हो तो अवश्य पढ़ें यानी जब तक जियेंगे यहीं रहेंगे !
    http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_23.html

  5. संजय भास्‍कर says:
    23 अगस्त 2010 को 4:51 pm बजे

    बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

  6. Urmi says:
    25 अगस्त 2010 को 9:19 am बजे

    रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
    बहुत बढ़िया लिखा है आपने! शानदार पोस्ट!

  7. neelima garg says:
    25 अगस्त 2010 को 5:13 pm बजे

    so good...

  8. Girish Kumar Billore says:
    26 अगस्त 2010 को 10:43 pm बजे

    Wah
    adabhut

  9. Taarkeshwar Giri says:
    27 अगस्त 2010 को 4:52 pm बजे

    Very Short But Very Deep

  10. संगीता स्वरुप ( गीत ) says:
    31 अगस्त 2010 को 11:24 pm बजे

    बहुत खूब ...
    इश्क की नज़्म भी
    होती है तभी पूरी
    जब उम्र का कागज
    हो जाता है खत्म ..

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