तुम एक ख़्वाब लगते हो...
कभी
मैं सोचती
ज़ुल्फ़ों की घनी, महकी, नरम छांव में
तुम्हें बिठाकर
वो सभी जज़्बात से सराबोर अल्फ़ाज़
जो मैंने बरसों से
अपने दिल की गहराइयों में
छुपाकर रखे
तुम्हारे सामने बिखेर दूं
और तुम
मेरे जज़्बात, मेरे अहसासात पढ़ लो
लेकिन
मेरा ज़हन
मेरा साथ नहीं देता
क्यूंकि
मेरी रूह, मेरे ख्यालात
कहते हैं-
कहीं ये एक ख़्वाब ही न हो
और
ये तसव्वुर करके
मेरा वजूद सहम जाता है
बस, ख़्वाब के टूटने के खौफ़ से
पता नहीं क्यूं
तुम एक ख़्वाब लगते हो
और मैं
उम्र की रहगुज़ारों में
भटकती रहती हूं
बस इक ख़्वाब को अपने हमराह लिए
जो मेरा अपना है...
-फ़िरदौस ख़ान
5 नवंबर 2008 को 4:25 pm बजे
sundar shbdon me samvednaon ko piroya hai aapne.
5 नवंबर 2008 को 5:04 pm बजे
वो सभी जज़्बात से सराबोर अल्फाज़
जो मैंने बरसों से
अपने दिल की गहराइयों में
छुपाकर रखे
तुम्हारे सामने बिखेर दूं
और तुम
मेरे जज़्बात, मेरे अहसासात पढ़ लो
"gajab kee anubhutee see gujar gya dil in pankteyon ko pdh kr"
Regards
5 नवंबर 2008 को 5:12 pm बजे
bahot hi sundar soncha koi line aapko notice karaun ke ye kitni sundar line likha hai magar koi dhundh na paya .... bahot hi sundar jajbat ukera hai aapne ..
aapko dhero badhai .. swikar karen
arsh
5 नवंबर 2008 को 5:17 pm बजे
bahoot khoobsurat
5 नवंबर 2008 को 6:07 pm बजे
बहुत खूबसूरती से आपने अपने ख्वाबों को संजोया है
बधाई
5 नवंबर 2008 को 8:55 pm बजे
संवेदना की गहरी अभिव्यक्ति!
5 नवंबर 2008 को 9:47 pm बजे
bahut umda nazm, ham to pahle se hii aapke kaayal hain
11 नवंबर 2008 को 1:52 am बजे
हादसों के डर से क्या सपने सजाना छोड़दें ?
26 नवंबर 2014 को 11:43 am बजे
कल 27/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !