شوگر کا گھریلو علاج
-
* فردوس خان*
شوگر ایک ایسی بیماری ہے جس کی وجہ سے انسان کی زندگی بہت بری طرح متاثر
ہوتی ہے۔ وہ مٹھائیاں، پھل، آلو، کولکاشیا اور اپنی پسند کی بہت سی د...
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6 सितंबर 2008 को 11:19 am बजे
यादों के जज़ीरे पर
जून की किसी गरम दोपहर की तरह
मुझे अब भी
तुम्हारे लम्स की गर्मी वहां महसूस होती है
और लगता है
तुम मेरे क़रीब हो...
बहुत ख़ूब...नज़्म का एक-एक लफ्ज़ ज़हन पर छा जाता है...
6 सितंबर 2008 को 8:09 pm बजे
मैं अपने माज़ी के
वर्क पलटती हूं
तह-दर-तह
यादों के जज़ीरे पर
जून की किसी गरम दोपहर की तरह
मुझे अब भी
तुम्हारे लम्स की गर्मी वहां महसूस होती है
और लगता है
तुम मेरे क़रीब हो...
बहुत खूब आपको पढ़कर परवीन शाकिर की याद आ गयी....खूब लिखती है आप ......कुछ ओर बांटिये
6 सितंबर 2008 को 8:26 pm बजे
वाह!! बहुत खूब!!
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निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
13 अप्रैल 2010 को 1:17 pm बजे
very nice and heart touching. speechless.
21 सितंबर 2010 को 10:38 pm बजे
खूबसूरत खयाल है
उम्दा
23 सितंबर 2010 को 9:33 am बजे
बहुत सुन्दर कबिता लिखती है आप जून की दोपहर की गर्मी भादौ क़े महीने याद आ रही है बहुत सुन्दर भाव है कबिता क़े
बड़े मुस्किल से आपका ब्लॉग पढने को मिला
बहुत-बहुत धन्यवाद.
29 सितंबर 2010 को 8:34 pm बजे
बहुत अच्छी नज़्म है.
25 मार्च 2012 को 11:01 am बजे
जला कर हाथ अपने खूब छाले फोड़ कर दिल के
उन्ही की टीस में जीना यह मेरी इबादत है
bhut umda
bhut 2 hardik bdhai