फूल पलाश के...
फूल पलाश के
वक़्त के समन्दर में
यादों का जज़ीरा हैं
जिसके हर ज़र्रे में
ख़्वाबों की धनक फूटती है
फ़िज़ाओं में
चाहत के गुलाब महकते हैं
जिसकी हवायें
रूमानी नग़में गुनगुनाती हैं
जिसके जाड़ों पर
क़ुर्बतों का कोहरा छाया होता है
जिसकी गर्मियों में
तमन्नायें अंगड़ाइयां लेती हैं
जिसकी बरसात
रफ़ाक़तों से भीगी होती है
फूल पलाश के
इक उम्र का
हसीन सरमाया ही तो हैं...
-फ़िरदौस ख़ान
18 सितंबर 2008 को 9:25 am बजे
फूल पलाश के
वक़्त के समंदर में
यादों का जज़ीरा हैं
जिसके हर ज़र्रे
ख़्वाबों की धनक फूटती है
फ़िज़ाओं में
चाहत के गुलाब महकते हैं
जिसकी हवाएं
रूमानी नगमें गुनगुनाती हैं
जिसके जाड़ों पर
कुर्बतों का कोहरा छाया होता है
जिसकी गर्मियों में
तमन्नाएं अंगडाइयां लेती हैं
जिसकी बरसात
रफाकतों से भीगी होती है
बहुत ही प्यारी नज़्म है...लिखती रहें...
18 सितंबर 2008 को 10:40 am बजे
फूल पलाश के
वक़्त के समंदर में
यादों का जज़ीरा हैं
बहुत खूब ...अच्छी लगी आपकी यह रचना
18 सितंबर 2008 को 11:54 am बजे
सुंदर रचना है. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूं. आकर अच्छा लगा.
18 सितंबर 2008 को 12:37 pm बजे
sweet poem...
18 सितंबर 2008 को 11:16 pm बजे
वाह...वा...बहुत नाज़ुक ख्यालों वाली रचना...बेमिसाल...
नीरज
19 सितंबर 2008 को 5:28 pm बजे
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।