तुम हो महबूब मेरे...
तुम हो महबूब मेरे तुमको बताऊं कैसे
बेक़रारी तुम्हें दिल की दिखाऊं कैसे
ज़िन्दगी में मेरी कांटों के सिवा कुछ भी नहीं
फूल राहों में तुम्हारी मैं बिछाऊं कैसे
तेरे नग़में मेरी इक उम्र का सरमाया हैं
अपनी यादों से भला इनको मिटाऊं कैसे
दरो-दीवार पे छाई हुई ख़ामोशी है
घर के आंगन में बहारों को बुलाऊं कैसे
जुस्तजू फिर मुझे सहराओं में ले आई है
वक़्त की तल्ख़ियों से ख़ुद को बचाऊं कैसे
मुझको मालूम है हर ख़्वाब की ताबीर नहीं
अपनी पलकों पे सदा इनको सजाऊं कैसे
फिर स्याह रात किनारों पे उतर आई है
बीच तूफ़ां के चराग़ों को जलाऊं कैसे
-फ़िरदौस ख़ान
ज़िन्दगी में मेरी कांटों के सिवा कुछ भी नहीं
फूल राहों में तुम्हारी मैं बिछाऊं कैसे
तेरे नग़में मेरी इक उम्र का सरमाया हैं
अपनी यादों से भला इनको मिटाऊं कैसे
दरो-दीवार पे छाई हुई ख़ामोशी है
घर के आंगन में बहारों को बुलाऊं कैसे
जुस्तजू फिर मुझे सहराओं में ले आई है
वक़्त की तल्ख़ियों से ख़ुद को बचाऊं कैसे
मुझको मालूम है हर ख़्वाब की ताबीर नहीं
अपनी पलकों पे सदा इनको सजाऊं कैसे
फिर स्याह रात किनारों पे उतर आई है
बीच तूफ़ां के चराग़ों को जलाऊं कैसे
23 अगस्त 2008 को 8:26 pm बजे
फिर स्याह रात किनारों पे उतर आई है
बीच तूफां के चरागों को जलाऊं कैसे
बहुत खूब।
जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाई।
26 अगस्त 2008 को 10:00 am बजे
तुम हो महबूब मेरे तुमको बताऊं कैसे
बेक़रारी तुम्हें दिल की दिखाऊं कैसे
ज़िन्दगी में मेरी कांटों के सिवा कुछ भी नहीं
फूल राहों में तुम्हारी मैं बिछाऊं कैसे
बहुत ख़ूब...शानदार ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें...