मरने के हमेशा ही बहाने नहीं आते

होठों पे मुहब्बत के तराने नहीं आते
जो बीत गए फिर वो ज़माने नहीं आते

आज़ाद वतन है, इसे आज़ाद रखेंगे
मरने के हमेशा ही बहाने नहीं आते

इस देश की इज़्ज़त है तिरंगा ये हमारा
रंग इसके निगाहों में बसाने नहीं आते

बातें तो बहुत करते हैं, ये अहले-सियासत
उजड़ी हुई बस्ती को बसाने नहीं आते

पत्थर को भी हमने दिया भगवन का दर्जा
दुश्मन के भी दिल, हमको दुखाने नहीं आते
-फ़िरदौस ख़ान
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4 Response to "मरने के हमेशा ही बहाने नहीं आते"

  1. नीरज गोस्वामी says:
    14 अगस्त 2008 को 10:46 am बजे

    आज़ाद वतन है, इसे आज़ाद रखेंगे
    मरने के हमेशा ही बहाने नहीं आते
    पत्थर को भी हमने दिया भगवन का दर्जा
    दुश्मन के भी दिल, हमको दुखाने नहीं आते
    बेहद खूबसूरत शेर कहे हैं आपने इस ग़ज़ल में...मेरी दिली दाद कुबूल फरमाएं.
    नीरज

  2. Unknown says:
    14 अगस्त 2008 को 2:21 pm बजे

    फ़िरदौस एक युवा पत्रकार होने के साथ-साथ आधुनिक और बेबाक लेखनी की मलिका हैं... हिन्दी और उर्दू साहित्य के आसमान में स्वछंद विचरण करने वाली लेखिका पाठकों के ख्यालात और जज़्बातों की नब्ज़ को पहचानने में माहिर हैं... आलोचनाओं से बेफ़िक्र होकर वे अपनी क़लम चलाती हैं... उनके आधुनिक ख्यालात पाठकों के मन-मस्तिष्क पर छा जाते हैं. मेरी तमन्ना है कि वे हिन्दी और उर्दू साहित्य में दिनोदिन तरक्की करती रहें और इसी तरह अच्छे लेख, कवितायें और ग़ज़लें लिखकर अपने पाठकों से वाहवाही लूटती रहें...

  3. Udan Tashtari says:
    14 अगस्त 2008 को 6:24 pm बजे

    पत्थर को भी हमने दिया भगवन का दर्जा
    दुश्मन के भी दिल, हमको दुखाने नहीं आते

    -बहुत उम्दा, क्या बात है!

  4. Unknown says:
    18 अगस्त 2008 को 12:59 pm बजे

    आज़ाद वतन है, इसे आज़ाद रखेंगे
    मरने के हमेशा ही बहाने नहीं आते

    इस कविता को पढ़कर देशभक्ति की प्रेरणा मिलती है. वाह! वाह ! क्या खूब लिखा है आपने फिरदौस जी. आप ऐसे ही लिख-लिख कर लोगों को देश के प्रति उनका कर्तव्य याद दिलाती रहें.

    मेरी शुभकामनाओ के साथ

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