रोटी और चांद

रात के सन्नाटे में
एक लम्बी, पतली
स्याह सड़क
नागिन की तरह
बल खाती हुई
दिखाई देती है
दूर, बहुत दूर...
सड़क के एक छोर पर
खड़े पेड़ के नीचे
एक बच्चा
'रोटी-रोटी' चिल्ला रहा है
एक रोटी के लिए
भूख से बेहाल
कभी नोंचता है
मां के बिखरे हुए बाल
तो कभी
उसके आंचल का
फटा पुराना पल्लू
चबाने लगता है
ढकने की पूरी कोशिश की है
भूख न मिटने की हालत में
मां को जड़ देख
वो हाथ बढ़ाता है
दूर आसमान में
सितारों के बीच
चमकते चांद की तरफ़
अपने नन्हें हाथों से
ताली बजाता है
मानो
उसकी चाह
पूरी हो गई हो
उसे रोटी दिख गई हो
फिर वो चांद पकड़ने की
नाकाम कोशिश करता है
बच्चे के मासूम चेहरे को देख
मां के सब्र का बांध
टूट जाता है
और आंखों से
बहने लगती है
गंगा-जमना
कोसती है वो ख़ुद को
अपनी बदकिस्मती को
ग़रीबी को
अपनी मजबूरी को
फिर उसकी नज़र
जा टिकती है चांद पर
पूछती है ख़ुद से
रोटी और चांद में अंतर
आख़िर में
दोनों को ही
एक मान लेती है
क्यूंकि
दोनों ही तो
उससे दूर है, बहुत दूर...
-फ़िरदौस ख़ान

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5 Response to "रोटी और चांद"

  1. राजीव रंजन प्रसाद says:
    12 अगस्त 2008 को 4:43 pm बजे

    फिरदौस जी,

    पूछती है ख़ुद से
    रोटी और चांद में अंतर
    आख़िर में
    दोनों को ही
    एक मान लेती है
    क्यूंकि
    दोनों ही तो
    उससे दूर है, बहुत दूर...

    रचना न सिर्फ संवेदित करती है अपितु पढने के बाद मन इतना बोझिल हो गया कि...बेहतरीन रचना।


    ***राजीव रंजन प्रसाद

    www.rajeevnhpc.blogspot.com
    www.kuhukakona.blogspot.com

  2. नीरज गोस्वामी says:
    12 अगस्त 2008 को 6:10 pm बजे

    बहुत मार्मिक रचना है...लेकिन हम ऐसे लोगों के लिए क्या कर रहे हैं...??? शायद कुछ नहीं.
    नीरज

  3. Udan Tashtari says:
    12 अगस्त 2008 को 9:12 pm बजे

    बहुत मार्मिक...

  4. बेनामी Says:
    13 अगस्त 2008 को 12:10 pm बजे

    हमारे देश में आज भी कितने ही लोग ऐसे हैं, जिन्हें दो वक़्त का खाना तक नसीब नहीं हो पाता...आपने भूख की मार्मिक तस्वीर पेश की है...

  5. jagmohan says:
    17 जनवरी 2010 को 4:50 pm बजे

    ये चांद आज तक मुझे से कैसे छुपा रहा...समझ नहीं पा रहा हूं...बहुत खुब...बधाई हो...जगमोहन 'आज़ाद'

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