सिर्फ़ तुम...

मौलाना जलालुद्दीन रूमी को एक औरत से मुहब्बत हो गई. वे अपनी महबूबा के घर गए और दरवाज़े पर दस्तक दी. अदर से एक औरत की आवाज़ आई- कौन है?
मौलाना रूमी ने जवाब दिया- मैं हूं. रूमी, तुम्हारा आशिक़...
लेकिन कोई जवाब नहीं आया... मौलाना रूमी दरवाज़ा खोलने की इल्तिजा करते रहे... लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला और न ही अंदर से कोई आवाज़ आई.
कई रोज़ तक ये सिलसिला चलता रहा. मौलाना रूमी अपने होश-हवास खो बैठे. और दर-ब-दर भटकते फिरते रहे. कुछ अरसे बाद वे फिर अपनी महबूबा के घर गए और दरवाज़े पर फिर से दस्तक दी. अंदर से आवाज़ आई- कौन है ?
मौलाना रूमी ने जवाब दिया- तुम, सिर्फ़ तुम.रूमी अब कहीं नहीं, हर तरफ़ सिर्फ़ तुम ही तुम हो.
दरवाज़ा खुल गया और मौलाना रूमी को अंदर बुला लिया गया.

इसी को इश्क़ कहते हैं... इश्क़ में सिर्फ़ महबूब होता है और कोई नहीं...
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