हश्र
हमारी नज़्म ’हश्र’ उन ’अमन पसंदों’ के नाम, जिन्होंने दुनिया को दोज़ख़ बनाकर रख दिया है...
अमन पसंदो !
तुम अपने मज़हब के नाम पर
क़त्ल करते हो मर्दों को
बरहना करते हो औरतों को
और
मौत के हवाले कर देते हो
मासूम बच्चों को
क्योंकि
तुम मानते हो
ऐसा करके तुम्हें जन्नत मिल जाएगी
जन्नती शराब मिल जाएगी
हूरें मिल जाएंगी...
लेकिन-
क़यामत के दिन
मैदाने-हश्र में
जब तुम्हें आमाल नामे सौंपे जाएंगे
तुम्हारे हर छोटे-बड़े आमाल
तुम्हें दिखाए जाएंगे
तुम्हारे आमाल में शामिल होंगी
उन मर्दों की चीख़ें
जिन्हें तुमने क़त्ल किया
उन औरतें की बददुआएं
जिन्हें तुमने बरहना किया
और
उन मासूमों की आहें
जिन्हें तुमने मौत की नींद सुला दिया...
कभी सोचा है
उस वक़्त
तुम्हारा क्या हश्र होगा...
-फ़िरदौस ख़ान
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