ताओ तेह चिंग में जीवन का सार
फ़िरदौस ख़ान
भारत में जो दर्जा ऋग्वेद को हासिल है, चीन में वही मुक़ाम ताओ तेह चिंग का है. इस प्राचीन ग्रंथ को चीनी दर्शन का मूल माना जाता है. चीन के महान दार्शनिक लाओ त्सु की इस कालजयी रचना ने चीनी फ़लस़फे की सभी शाखाओं को प्रभावित किया है, चाहे वह लीगलिज्म हो, निओ कन्फयूशियनिज्म हो या फिर चीनी बुद्धिज्म हो. इस ग्रंथ ने दुनिया भर के प्रगतिशील समाज का ध्यान भी अपनी तरफ़ खींचा है. लाओ त्सु के सूक्त चीन, हांगकांग और ताइवान आदि देशों में इतने ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जितना हमारे देश में वेदमंत्र अहमियत रखते हैं. ताओ तेह चिंग के सूक्त ईसा से भी कई साल पहले से ताओवादियों के दिलों पर राज कर रहे हैं. इनकी ख़ास बात यह है कि ये सूक्त किसी देश या जाति विशेष के लिए नहीं हैं, बल्कि यह समूची मानव जाति के कल्याण के लिए हैं.
हिन्द पॉकेट बुक्स ने हाल में चीन के महान दार्शनिक लाओ त्सु की विचारधारा और उनकी शिक्षाओं पर आधारित एक किताब प्रकाशित की है. महान चीनी दार्शनिक लाओ त्सु नामक यह किताब इस महान दार्शनिक पर लिखी गई अंग्रेजी की एक किताब का अनुवाद है. अनुवादक इला कुमार का कहना है कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वह चीनी ग्रंथ ताओ तेह चिंग का अनुवाद करेंगी, लेकिन यह काम करके उन्हें बेहुद ख़ुशी मिली है.
हिंदुस्तान की तरह ही चीन की सभ्यता भी बहुत पुरानी है. तक़रीबन छह हज़ार बरसों का इसका इतिहास मौजूद है. चीन के इतिहास में लाओ त्सु का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है. कंफ्यूशियस भी उनके समकालीन थे. हिंदुस्तान के महात्मा बुद्ध, महावीर और यूनान के महान दार्शनिक सुकरात भी उनके आसपास के वक़्त में ही हुए हैं. लाओ त्सु चीन के सरकारी पुस्तकालय में तक़रीबन चार दशक तक ग्रंथपाल रहे. इसी दौरान उन्हें किताबें प़ढने का शौक़ हो गया और वह एक के बाद एक किताबें प़ढते चले गए. किताबों ने उनकी ज़िंदगी में भी इल्म की रौशनी बिखेर दी. अब उनकी ज़िंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी. पुस्तकालय की नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद वह लिंगपो पर्वत पर चले गए और वहां ध्यान चिंतन में लीन हो गए. नतीजतन, उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. ताओ तेह चिंग उनका सुप्रसिद्ध ग्रंथ है. इसके बारे में कहा जाता है कि इसमें वर्णित विचार लाओ त्सु के न होकर अन्य दार्शनिकों के हैं.
ताओ तेह चिंग के बारे में ओशो ने लिखा था-लाओ त्सु ने यह अकेली एक ही किताब लिखी है और यह उसने लिखी ज़िंदगी के आख़िरी हिस्से में. उसने कोई किताब कभी नहीं लिखी. और ज़िंदगी भर लोग उसके पीछे पड़े थे. साधारण से आदमी से लेकर सम्राट तक ने उससे प्रार्थना की थी कि लाओ त्सु, अपने अनुभव को लिख जाओ. लाओ त्सु हंसता और टाल देता. और लाओ त्सु कहता, कौन कब लिख पाया है? मुझे उस नासमझी में मत डालो. पहले भी लोगों ने कोशिश की है. और जो जानते हैं उनकी कोशिश पर हंसते हैं, क्योंकि वे नाकाम हुए हैं. और जो नहीं जानते, वे उनकी नाकामी को सत्य न समझ कर पकड़ लेते हैं. मुझसे यह भूल न करवाएं. जो जानते है, वे मुझ पर हंसेंगे कि देखो, लाओ त्सु भी वहीं कर रहा है. जो नहीं कहा जा सकता, उसे कह रहा है. जो नहीं लिखा जा सकता, उसको लिख रहा है. नहीं, यह मैं नहीं करूंगा. लाओ त्सु ज़िंदगी भर टालता रहा, टालता रहा. मौत क़रीब आने लगी, तो मित्रों का दबाव और शिष्यों का आग्रह भारी पड़ने लगा. लाओ त्सु के पास सच में संपदा तो बहुत थी. बहुत कम लोगों के पास इतनी संपदा होती है. बहुत कम लोगों ने इतना गहरा जाना और देखा है. तो स्वाभाविक था, आसपास के लोगों का आग्रह भी उचित और ठीक ही था. लाओ त्सु लिख जाओ, लिख जाओ. जब आग्रह बहुत बढ़ गया और मौत दिखाई देने लगी आते हुए. और लाओ त्सु मुश्किल में पड़ गया, तो एक रात निकल भागा. निकल भागा, उन लोगों की वजह से, जो पीछे पड़े थे कि लिखो, बोलो, कहो. सुबह शिष्यों ने देखा कि लाओ त्सु की कुटिया ख़ाली है. पक्षी उड़ गया. पिंजड़ा ख़ाली पड़ा है. वे बड़ी मुश्किल में पड़ गए. सम्राट को ख़बर की गई और लाओ त्सु को मुल्क की सरहद पर पकड़ा गया. सम्राट ने अधिकारी भेजे और लाओ त्सु को रुकवाया, चुंगी पर देश की, जहां चीन समाप्त होता था. और लाओ त्सु से कहा कि सम्राट ने कहा है कि चुंगी दिए बिना तुम जा न सकोगे, तो लाओ त्सु ने कहा कि मैं तो कुछ भी साथ नहीं लिए जा रहा हूं, जिससे मुझे चुंगी देनी पड़े. सम्राट ने कहलवा भेजा कि तुमसे ज़्यादा संपत्ति इस मुल्क के बाहर कभी कोई आदमी लेकर नहीं भागा. रुको, चुंगी नाके पर और जो भी तुमने जाना है, लिख जाओ.
ताओवाद चीन के प्रमुख धर्मों में शामिल है. ताओ तेह चिंग की रचनाओं में जीवन का सार है. बानगी देखिए-
स्वयं पर विजय
दूसरों को ताक़त द्वारा जीता जा सकता है
लेकिन स्वयं पर विजय पाना असंभव जैसा है
प्राप्य में संतुष्टि पाना धनवान की निशानी है
हिंसा द्वारा भी लक्ष्य प्राप्ति शायद संभव है
लेकिन जो अडिग है, वही सह सकता है
मृत्यु के कारण कोई खो नहीं जाता
बल्कि वह है एक क़िस्म का दीर्घ अमर्त्यता
ताओ की गति
वापसी ताओ की गति है
समर्पित होना ताओ का रास्ता है
हज़ारों लाखों वस्तुएं चैतन्यता से जन्मती हैं
चैतन्यता अवचेतन के द्वारा स्वरूप पाता है
बहरहाल, यह किताब लाओ त्सु के दर्शन को समझने का बेहतर साधन है. हिन्द पॉकेट बुक्स की किताबों की यह भी एक ख़ासियत है कि इसकी क़ीमत पाठकों की पहुंच के भीतर ही रहती है. (स्टार न्यूज़ एजेंसी)
समीक्ष्य कृति : लाओ त्सु
प्रस्तुति : इला कुमार
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स
क़ीमत : 95 रुपये
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