हरे आलू...
फ़िरदौस ख़ान
आज सब्ज़ी वाले से बैंगन का भाव पूछा, तो कहने लगा बीस रुपये किलो हैं... हमने कहा- आधा किलो दे दो... उसने दो बाट रखे, एक पांच सौ ग्राम का और दूसरा सौ ग्राम का... हमने कहा-हमें तो आधा किलो ही चाहिए... वह कहने लगा- मैडमजी आपको दस रुपये में छह सौ ग्राम दे रहा हूं... हमने कहा कि जब हम दस रुपये में आधा किलो ले रहे हैं, तो फिर ज़्यादा क्यों...? वह बोला- मैं बैंगन में मुनाफ़ा कमा चुका हूं... फिर आप भी तो हमारे बारे में सोचते हो...
जाड़ो की बात है... एक दिन सब्ज़ी वाला बहुत उदास था... हमने पूछा-क्या हुआ...? वह कहने लगा-मैडमजी, आलू की दो बोरियां ख़रीदी थीं... बहुत से आलू हरे (ख़राब) आ गए... ऐसे में बहुत नुक़सान हो गया... आलू ज़्यादा क़ीमत पर भी नहीं बेच सकता... आज दिनभर घूमने के बाद भी नुक़सान पूरा नहीं हो सकेगा... फ़ायदा होना तो दूर की बात है...
हमने कहा कि जो भी ग्राहक आलू ख़रीदे, उसमें एक-दो हरे आलू डाल देना... शुरुआत हमसे कर लीजिए... हमें चार-पांच हरे आलू दे देना... इससे ग्राहक को कोई ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा... और आपका नुक़सान होने से बच जाएगा... हमने ख़ुद ही तराज़ू में कुछ हरे आलू डाल दिए... वह हैरानी से देखने लगा... हमने ग़ौर किया, उसकी आंखों में एक उम्मीद नज़र आ रही थी...
हम जानते थे कि उसके नुक़सान की भरपाई के लिए कोई कुछ नहीं करेगा... ग़रीबों का कोई नहीं होता... कोई भी नहीं... बहुत से लोगों के लिए दो बोरी आलू की क़ीमत कुछ भी नहीं है... लेकिन एक ग़रीब आदमी के लिए, एक मेहनतकश के लिए यह एक बहुत बड़ी रक़म है...
अगले दिन सब्ज़ी वाले ने बताया कि आलू से उसे ज़्यादा फ़ायदा, तो नहीं हुआ, लेकिन उसका नुक़सान होने से ज़रूर बच गया...
हमने सही किया या ग़लत नहीं जानते... पर इतना ज़रूर है कि उसका नुक़सान होने से बच गया... इसकी हमें ख़ुशी है...
0 Response to "हरे आलू..."
एक टिप्पणी भेजें