रंग-बिरंगी कढ़ाई वाले रुमाल...
फ़िरदौस ख़ान
तुम्हें मालूम है न. कुछ काम हमें कितना सुकून देते हैं. जैसे सफ़ेद रुमालों पर रंग-बिरंगे रेशम से बेल-बूटे टांकना. स्कूल के दिनों में बहुत रुमालों पर एक से एक ख़ूबसूरत फूल काढ़े हैं. लाल, गुलाबी, पीले, नीले और कई शेड वाले गुलाब, चम्पा और न जाने कौन-कौन से फूल. कुछ फूलों के आकार पेंसिल से बनाए, तो कुछ दादी जान के फ़र्मों से. पहले फ़र्मों पर हल्की-सी रौशनाई लगाई, फिर उसे रुमाल के एक कोने पर छाप दिया. उसके बाद रुमाल को फ़्रेम पर कसकर रेशम से फूल काढ़े, पत्तियां हरे रंगों से, कलियां हल्के रंगों से और फूल गहरे रंगों से. एक रुमाल की कढ़ाई में कई-कई दिन लग जाते थे, क्योंकि सुबह स्कूल जाना. ढेर सारा होमवर्क करना. खेलना भी तो ज़रूरी होता था. रात में रुमाल याद आते थे. देर तक जागने पर दादी जान कहती थीं- सुबह कौन-सा इम्तिहान है. यह काम कल कर लेना. और न चाहते हुए भी हमें कढ़ाई छोड़नी पड़ती.
रेशम ख़रीदने के लिए पापा के साथ बाज़ार जाया करते थे. दुकान पर जब बहुत से प्यारे-प्यारे रंग देख कर समझ नहीं पाते थे कि कौन-से रंग का रेशम ख़रीदें और कौन-सा छोड़े. सभी तो एक से बढ़कर एक हुआ करते थे. तब पापा कहते- बबीता सभी ले लो. बचपन में पापा हमें बबीता ही कहा करते थे. वे बाद में फ़िरदौस कहने लगे, क्योंकि हमें लोग फ़िरदौस नाम से ही जानते हैं, जो हमारा असली नाम है. वैसे भी हमारे कई नाम रहे हैं. इस बारे में फिर कभी बात करेंगे. बहरहाल, हम ढेर सारे रेशम ख़रीदकर घर आते. हां, रास्ते में पापा हमें आईसक्रीम, छोले, समौसे और भी न जाने क्या-क्या खिलाते थे. पापा के साथ खायी सभी चीज़ें हम आज भी खाते हैं, पर वह मज़ा नहीं आता, जो पापा के साथ आया करता था.
पापा के साथ ख़रीदे गए रेशम आज भी एक डिब्बे में रखे हुए हैं. जब भी इन्हें देखते हैं, तो पापा बहुत याद आते हैं. हमने कितने ही रुमाल काढ़े, अपनी टीचर को दिए, अम्मी को दिए. अम्मी के पास कभी रुमाल टिके ही नहीं, क्योंकि जो भी रुमाल देखता मांग लेता. अम्मी कभी मना ही नहीं कर पाती थीं, लेकिन हमें हमेशा इस बात का अफ़सोस रहा कि हमने कभी तुम्हें रुमाल नहीं दिया, क्योंकि हमारी एक सहेली ने कहा था-रुमाल देने से रिश्ता टूट जाता है. यह बात कितनी सच है, हम नहीं जानते, लेकिन तुम्हारे मामले में कोई रिस्क लेना नहीम चाहते थे. देखो, हमने तुम्हें कोई रुमाल नहीं दिया. फिर भी तुम कितने दूर हो. मन के सबसे क़रीब होकर भी दूर, बहुत दूर.
अब हम एक रुमाल काढ़ना चाहते हैं, तुम्हारे लि, रंग-बिरंगे रेशम से. क्योंकि हम जान गए हैं कि रिश्ते तो क़िस्मत से बनते और बिखरते हैं. फिर क्यों हम तुम्हें उस रुमाल से महरूम रखें, जो तुम हमेशा से चाहते हो.
दैनिक अमृत विचार
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