इक राह तो वो होगी, तुम तक जो पहुंचती है...
मुझे हर उस शय से मुहब्बत है, जो तुम से वाबस्ता है. हमेशा से मुझे सफ़ेद रंग अच्छा लगता है. बाद में जाना कि ऐसा क्यों था. तुम्हें जब भी देखा सफ़ेद दूधिया लिबास में देखा. लोगों के हुजूम में तुम्हें देखकर ऐसा लगता है, जैसे चांद ख़ुद ज़मीं पर उतर आया हो. सच तुम इस ज़मीं का चांद ही तो हो, जिससे मेरी ज़िन्दगी में उजाला बिखरा है.
जब तुम परदेस में होते हो तो अपना देस भी बेगाना लगने लगता है. हर पल तुम्हारे लौटने का इंतज़ार रहता है. कभी ऐसा भी होता है कि परदेस ही अपना सा लगने लगता है, क्योंकि तुम वहां जो हो. सच मुहब्बत भी क्या शय है, जो ख़ुदा के क़रीब पहुंचा देती है. जबसे तुम्हें चाहा है, तब से ख़ुदा को पहचाना है. हर वक़्त तुम्हीं को क़रीब पाया है. सावन में जब आसमां पर काली घटाएं छा जातीं हैं और फिर बारिश की बूंदें प्यासी धरती की प्यास बुझाती हैं. जाड़ो में कोहरे से घिरी सुबह क्यारियों में महकते गुलाब फ़िज़ां में भीनी-भीनी ख़ुशबू बिखेर देते हैं. और गर्मियों की तपती दोपहरों और सुलगती रातों में भी हर सिम्त तुम ही तुम नज़र आते हो.
तुम्हारे बग़ैर कुछ भी अच्छा नहीं लगता.
ख़्वाजा मुहम्मद ख़ां ताहिर साहब ने सच ही तो कहा है-
फिर ज़ुलैख़ा न नींद भर सोई
जबसे यूसुफ़ को ख़्वाब में देखा...
मुझे वो सड़क भी बेहद अज़ीज़ है, जो तुम्हारे शहर तक जाती है. वैसे मैं जहां रहती हूं, वहां से कई सड़कें तुम्हारे शहर तक जाती हैं. पर आज तक ये नहीं समझ पाई कि मैं किस राह पर अपना क़दम रखूं कि तुम तक पहुंच जाऊं, लेकिन दिल को एक तसल्ली ज़रूर है कि इन अनजान राहों में इक राह तो वो होगी, तुम तक जो पहुंचती है...
-फ़िरदौस ख़ान
10 सितंबर 2011 को 6:49 pm बजे
Very nice.
जब तुम परदेस में होते हो तो अपना देस भी बेगाना लगने लगता है. These lines gives the real picture of true love.
12 सितंबर 2011 को 11:29 am बजे
बहुत खूब !
लाजबाब !
13 सितंबर 2011 को 5:27 pm बजे
मुझे वो सड़क भी बेहद अज़ीज़ है, जो तुम्हारे शहर तक जाती है...वैसे मैं जहां रहती हूं, वहां से कई सड़कें तुम्हारे शहर तक जाती हैं...पर आज तक यह नहीं समझ पाई कि मैं किस राह पर अपना क़दम रखूं कि तुम तक पहुंच जाऊं...लेकिन दिल को एक तसल्ली ज़रूर है कि इन अनजान राहों में इक राह तो वो होगी, तुम तक जो पहुंचती है...
क्या बात है.....
हम आपको हुस्नो-कलाम की मलिका यूं ही नहीं कहते.....आपकी तहरीर का एक-एक लफ़्ज़ सीधा दिल में उतर जाता है.....
13 सितंबर 2011 को 5:33 pm बजे
लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी को उसका शहज़ादा जल्द से जल्द मिले.....दुआ करते हैं..... यक़ीन मानिए वो भी आपके लिए इतना ही बेचैन होगा.....
22 जनवरी 2012 को 6:43 pm बजे
Husne-mujassam,paak vuzu si,aayat jaisi lagti thi/oopar ke parkote per vo,Noorjahaan ban rahti thi/ekdin main bhi perkote par,bankar shaheen ja baitha/ karke guturgoon,aakhir main bhi baad-e-saba se kah baitha/Lafzon ki zanjeer se jakdi,shahzadi ko dekha hai----Ranjan Zaidi
22 जनवरी 2012 को 6:48 pm बजे
Husne-mujassam,paak vuzu si,aayat jaisi lagti thi/oopar ke parkote per vo,Noorjahaan ban rahti thi/ekdin main bhi perkote par,bankar shaheen ja baitha/ karke guturgoon,aakhir main bhi baad-e-saba se kah baitha/Lafzon ki zanjeer se jakdi,shahzadi ko dekha hai----Ranjan Zaidi