जब याद तुम्हारी आएगी...

इंतज़ार...किसी से मिलने की तड़प, जुदाई का दर्द, यादों की महक...कितना कुछ बसा है, इस एक लफ्ज़ में...इंतज़ार...जो मीठा भी है...और तल्ख़ भी...जिसके इंतज़ार में निगाहें राह में बिछी हों...और वो आ जाए तो इंतज़ार अहसास खुशनुमा हो जाता है...लेकिन जब वो न आए तो यही इंतज़ार उम्रभर का दर्द बन जाता है...इंतज़ार का एक-एक पल सदियों के बार (बोझ) की तरह महसूस होता है...हमने इंतज़ार के इन्हीं लम्हों को गीत में पिरोकर संजोया है...

जब याद तुम्हारी आएगी
फिर मुझको ख़ूब रुलाएगी
ग़मगीन लगेगी बादे-सबा
वीरानी-सी छा जाएगी

फिर अपने घर बुलवाने को
पैगाम तुम्हें मैं भेजूंगी
उन बेचैनी के लम्हों में
कैसे आस सहेजूंगी
फिर गमे-हिज्र के आलम में
हर पल मुश्किल से बीतेगा
लाखों कोशिश करने पर भी
यादों का सावन जीतेगा
राहों में ये पलकें बिछाके
चौखट पे जां टिक जाएगी
जब याद तुम्हारी आएगी
फिर मुझको ख़ूब रुलाएगी

नज़रों से ओझल होने पर
दर्शन किस विधि मैं पाऊंगी
उस रंजो-अलम की बेला में
दिल को कैसे समझाऊंगी
मेहंदी की डाल पे चिड़ियाँ
जब गीत ख़ुशी के गाएंगी
उन कसमो-वादों की बातें
रह-रहके मुझे सताएंगी

फिर नील गगन की चादर पे
संध्या की लाली छाएगी
जब याद तुम्हारी आएगी
फिर मुझको ख़ूब रुलाएगी
-फ़िरदौस ख़ान
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7 Response to "जब याद तुम्हारी आएगी..."

  1. Mithilesh dubey says:
    10 सितंबर 2009 को 11:52 am बजे

    bahut sundar rchna, lajwab.Bdhai

  2. रज़िया "राज़" says:
    10 सितंबर 2009 को 12:27 pm बजे

    फिर नील गगन की चादर पे
    संध्या की लाली छाएगी
    जब याद तुम्हारी आएगी
    फिर मुझको ख़ूब रुलाएगी
    लाजवाब!!!!खूबसूरत रचना।

  3. Unknown says:
    10 सितंबर 2009 को 2:43 pm बजे

    इस गीत को पढ़ कर उस शख्स की आँख ज़रूर नाम हो जायेगी जिसने कभी भी किसी का शिद्दत से इंतज़ार किया होगा.
    मगर दरअसल जिस शख्स का इंतज़ार किया जाता है वो भी ऐसे ही अहसास को जी रहा होता है क्योंकि इंतज़ार दोनों को तकलीफ देता है.
    कोई आने वाले के लिए बेचैन होता है तो कोई पंहुचने के लिए बेकरार होता है.
    दुआ है कि जिसके इंतज़ार में निगाहें राह में बिछी हों... वो आ जाए... और इंतज़ार अहसास खुशनुमा हो जाए... ज़िन्दगी खुशनुमा हो जाए.

  4. Unknown says:
    10 सितंबर 2009 को 2:53 pm बजे

    इस गीत को गुनगुनाने पर दो जगह कुछ कमी लगती है. गुजारिश है कि आप देख लें.
    राहों में ये पलकें बिछाके
    इसमें पलकें की जगह पलक होना चाहिए
    रह-रहके मुझको सताएंगी
    इसमें मुझको की जगह मुझे होना चाहिए

  5. Unknown says:
    10 सितंबर 2009 को 2:56 pm बजे

    @ इस गीत को पढ़ कर उस शख्स की आँख ज़रूर नाम हो जायेगी जिसने कभी भी किसी का शिद्दत से इंतज़ार किया होगा.
    नाम की बजाए नम है.

  6. फ़िरदौस ख़ान says:
    10 सितंबर 2009 को 3:24 pm बजे

    शुक्रिया! alex साहब... ग़लती सुधारने के लिए...दिल से गीत पढ़ने के लिए...और comments के लिए...मैं उन सभी ब्लोगर्स का तहे-दिल से शुक्रिया अदा करती हूं, जो मेरे ब्लॉग पर आते हैं और comments करते हैं...

  7. मोहन वशिष्‍ठ says:
    12 सितंबर 2009 को 2:42 pm बजे

    उस रंजो-अलम की बेला में
    दिल को कैसे समझाऊंगी
    मेहंदी की डाल पे चिड़ियाँ
    जब गीत ख़ुशी के गाएंगी

    वाह फिरदौस जी बेहतरीन बहुत ही प्‍यारे बोल हैं

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