हाथों में कैसे ये मेहंदी रचा लूं
इन आंखों में सूरत तुम्हारी बसा लूं
सफ़र आख़िरी है चलो मैं विदा लूं
ख़फ़ा ज़िन्दगी का हर इक रंग मुझसे
तो हाथों में कैसे ये मेहंदी रचा लूं
बहुत दूर मंज़िल तो राहें अंधेरी
अब ऐसे में यादों की शम्में जला लूं
ये मंज़र तो अब मुझसे देखें न जाएं
मैं दुख-दर्द दुनिया के दिल में छुपा लूं
हर इक लम्हा जब मौत सिर पर खड़ी है
तो क्या ज़िन्दगी से मैं अहदे-वफ़ा लूं
ये आंखें तो 'फ़िरदौस' सूनी रहेंगी
अगर ज़वरों से मैं ख़ुद को सजा लूं
-फ़िरदौस ख़ान
सफ़र आख़िरी है चलो मैं विदा लूं
ख़फ़ा ज़िन्दगी का हर इक रंग मुझसे
तो हाथों में कैसे ये मेहंदी रचा लूं
बहुत दूर मंज़िल तो राहें अंधेरी
अब ऐसे में यादों की शम्में जला लूं
ये मंज़र तो अब मुझसे देखें न जाएं
मैं दुख-दर्द दुनिया के दिल में छुपा लूं
हर इक लम्हा जब मौत सिर पर खड़ी है
तो क्या ज़िन्दगी से मैं अहदे-वफ़ा लूं
ये आंखें तो 'फ़िरदौस' सूनी रहेंगी
अगर ज़वरों से मैं ख़ुद को सजा लूं
-फ़िरदौस ख़ान
27 अगस्त 2008 को 9:52 am बजे
aapne sach me jaan hi nikaal li
keep it on firdos
sach me bahut achcha likha hai
Rakesh Kaushik
27 अगस्त 2008 को 6:46 pm बजे
बेहतरीन..आनन्द आ गया.
28 अगस्त 2008 को 5:17 pm बजे
इन आंखों में सूरत तुम्हारी बसा लूं
सफ़र आख़िरी है चलो मैं विदा लूं
ख़फ़ा ज़िन्दगी का हर इक रंग मुझसे
तो हाथों में कैसे ये मेहंदी रचा लूं
आपकी ग़ज़ल को पढ़कर दिल पर एक उदासी-सी तारी हो गई...क्या कहूं...?
7 सितंबर 2008 को 1:36 am बजे
इन आंखों में सूरत तुम्हारी बसा लूं
सफ़र आख़िरी है चलो मैं विदा लूं
बहुत बेहतरीन भाव
अच्छी गजल
वीनस केसरी