और हर बार क़ब्र छोटी पड़ जाती
फ़िरदौस ख़ान
कल एक वाक़िया सुना... सच या झूठ, जो भी हो... लेकिन वो सबक़ ज़रूर देता है...
एक क़बिस्तान में एक क़ब्र खोदी गई... उस क़ब्र में लेट कर देखा गया कि क़ब्र सही है, छोटी तो नहीं है, कहीं कोई कमी तो नहीं रह गई... क़ब्र सही थी...
क़ब्र में मैयत को उतारा गया... लेकिन जैसे ही क़ब्र में मैयत रखी, क़ब्र छोटी पड़ गई... मैयत को ऊपर उठा लिया गया... फिर से क़ब्र को वसीह (बड़ा) किया गया... और उसमें मैयत उतारी गई... लेकिन फिर से क़ब्र छोटी पड़ गई... कई बार क़ब्र खोदी गई, लेकिन हर बार वह छोटी पड़ जाती... सब हैरान और परेशान थे... आख़िरकार मुर्दे को जैसे-तैसे दफ़नाया गया...
जिस शख़्स को दफ़नाया गया था, उसके बारे में घरवालों और आस-पड़ौस के लोगों से मालूमात की गई... मालूम हुआ कि उसने अपने भाइयों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा किया हुआ था... लोगों का मानना था कि इसी वजह से उसकी क़ब्र तंग हो गई थी...
हम ये तो नहीं जानते कि ये वाक़िया सच्चा है या झूठा... हां, लेकिन इतना ज़रूर है कि इसने सोचने पर मजबूर कर दिया... आख़िर इंसान को चाहिये ही कितना होता है... दो वक़्त का खाना, चार जोड़े कपड़े... और मरने के बाद दो गज़ ज़मीन... फिर भी क्यों लोग दूसरों की हक़ तल्फ़ी करके ज़मीन-जायदाद, माल और दौलत इकट्ठी कराते हैं... सब यही रह जाना है... साथ अगर कुछ जाएगा, तो वो सिर्फ़ आमाल ही होंगे...
फिर क्यों इंसान दूसरों को लूटने में लगा हुआ है...? ज़रा सोचिये...
कल एक वाक़िया सुना... सच या झूठ, जो भी हो... लेकिन वो सबक़ ज़रूर देता है...
एक क़बिस्तान में एक क़ब्र खोदी गई... उस क़ब्र में लेट कर देखा गया कि क़ब्र सही है, छोटी तो नहीं है, कहीं कोई कमी तो नहीं रह गई... क़ब्र सही थी...
क़ब्र में मैयत को उतारा गया... लेकिन जैसे ही क़ब्र में मैयत रखी, क़ब्र छोटी पड़ गई... मैयत को ऊपर उठा लिया गया... फिर से क़ब्र को वसीह (बड़ा) किया गया... और उसमें मैयत उतारी गई... लेकिन फिर से क़ब्र छोटी पड़ गई... कई बार क़ब्र खोदी गई, लेकिन हर बार वह छोटी पड़ जाती... सब हैरान और परेशान थे... आख़िरकार मुर्दे को जैसे-तैसे दफ़नाया गया...
जिस शख़्स को दफ़नाया गया था, उसके बारे में घरवालों और आस-पड़ौस के लोगों से मालूमात की गई... मालूम हुआ कि उसने अपने भाइयों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा किया हुआ था... लोगों का मानना था कि इसी वजह से उसकी क़ब्र तंग हो गई थी...
हम ये तो नहीं जानते कि ये वाक़िया सच्चा है या झूठा... हां, लेकिन इतना ज़रूर है कि इसने सोचने पर मजबूर कर दिया... आख़िर इंसान को चाहिये ही कितना होता है... दो वक़्त का खाना, चार जोड़े कपड़े... और मरने के बाद दो गज़ ज़मीन... फिर भी क्यों लोग दूसरों की हक़ तल्फ़ी करके ज़मीन-जायदाद, माल और दौलत इकट्ठी कराते हैं... सब यही रह जाना है... साथ अगर कुछ जाएगा, तो वो सिर्फ़ आमाल ही होंगे...
फिर क्यों इंसान दूसरों को लूटने में लगा हुआ है...? ज़रा सोचिये...
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