नज़्म
जब कभी
ख़ामोश रात की तन्हाई में
सर्द हवा का इक झोंका
मुहब्बत के किसी अनजान मौसम का
कोई गीत गाता है तो
मैं अपने माज़ी के
वर्क़ पलटती हूं
तह-दर-तह
यादों के जज़ीरे पर
जून की किसी गरम दोपहर की तरह
मुझे अब भी
तुम्हारे लम्स की गर्मी वहां महसूस होती है
और लगता है
तुम मेरे क़रीब हो...
-फ़िरदौस ख़ान
यादों के जज़ीरे पर
जवाब देंहटाएंजून की किसी गरम दोपहर की तरह
मुझे अब भी
तुम्हारे लम्स की गर्मी वहां महसूस होती है
और लगता है
तुम मेरे क़रीब हो...
बहुत ख़ूब...नज़्म का एक-एक लफ्ज़ ज़हन पर छा जाता है...
मैं अपने माज़ी के
जवाब देंहटाएंवर्क पलटती हूं
तह-दर-तह
यादों के जज़ीरे पर
जून की किसी गरम दोपहर की तरह
मुझे अब भी
तुम्हारे लम्स की गर्मी वहां महसूस होती है
और लगता है
तुम मेरे क़रीब हो...
बहुत खूब आपको पढ़कर परवीन शाकिर की याद आ गयी....खूब लिखती है आप ......कुछ ओर बांटिये
वाह!! बहुत खूब!!
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निवेदन
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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
very nice and heart touching. speechless.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत खयाल है
जवाब देंहटाएंउम्दा
बहुत सुन्दर कबिता लिखती है आप जून की दोपहर की गर्मी भादौ क़े महीने याद आ रही है बहुत सुन्दर भाव है कबिता क़े
जवाब देंहटाएंबड़े मुस्किल से आपका ब्लॉग पढने को मिला
बहुत-बहुत धन्यवाद.
बहुत अच्छी नज़्म है.
जवाब देंहटाएंजला कर हाथ अपने खूब छाले फोड़ कर दिल के
जवाब देंहटाएंउन्ही की टीस में जीना यह मेरी इबादत है
bhut umda
bhut 2 hardik bdhai