रविवार, अगस्त 20, 2023

ख़ामोश रात की तन्हाई में...

नज़्म
जब कभी
ख़ामोश रात की तन्हाई में
सर्द हवा का इक झोंका
मुहब्बत के किसी अनजान मौसम का
कोई गीत गाता है तो
मैं अपने माज़ी के
वर्क़ पलटती हूं
तह-दर-तह
यादों के जज़ीरे पर
जून की किसी गरम दोपहर की तरह
मुझे अब भी
तुम्हारे लम्स की गर्मी वहां महसूस होती है
और लगता है
तुम मेरे क़रीब हो...
-फ़िरदौस ख़ान

8 टिप्‍पणियां:

  1. यादों के जज़ीरे पर
    जून की किसी गरम दोपहर की तरह
    मुझे अब भी
    तुम्हारे लम्स की गर्मी वहां महसूस होती है
    और लगता है
    तुम मेरे क़रीब हो...

    बहुत ख़ूब...नज़्म का एक-एक लफ्ज़ ज़हन पर छा जाता है...

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  2. मैं अपने माज़ी के
    वर्क पलटती हूं
    तह-दर-तह
    यादों के जज़ीरे पर
    जून की किसी गरम दोपहर की तरह
    मुझे अब भी
    तुम्हारे लम्स की गर्मी वहां महसूस होती है
    और लगता है
    तुम मेरे क़रीब हो...


    बहुत खूब आपको पढ़कर परवीन शाकिर की याद आ गयी....खूब लिखती है आप ......कुछ ओर बांटिये

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  3. वाह!! बहुत खूब!!

    ---------------------

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    -समीर लाल
    -उड़न तश्तरी

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  4. बहुत सुन्दर कबिता लिखती है आप जून की दोपहर की गर्मी भादौ क़े महीने याद आ रही है बहुत सुन्दर भाव है कबिता क़े
    बड़े मुस्किल से आपका ब्लॉग पढने को मिला
    बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  5. जला कर हाथ अपने खूब छाले फोड़ कर दिल के
    उन्ही की टीस में जीना यह मेरी इबादत है
    bhut umda
    bhut 2 hardik bdhai

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