जब तबीयत ठीक नहीं होती. बुख़ार से जिस्म निढाल होता है. आराम करते-करते भी कोफ़्त होने लगती है, ऐसे में अपने कमरे के सिवा सबकुछ कितना भला लगता है. दिल चाहता है कि बाहर कहीं घूमकर आएं. खिड़की से झांकते आसमान के आख़िरी किनारे तक. दिल चाहता है कि उड़कर किसी तरह नीले आसमान में तैर रहे दूधिया बादलों को छू लें. कहीं दूर दिखाई दे रहे दरख़्त की छांव में टहल आएं. खिड़की से नज़र आ रही सड़क पर बेमक़सद चलते रहें.
-फ़िरदौस ख़ान
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