रविवार, अगस्त 20, 2023

बरसात का मौसम...

नज़्म
गर्मियों का मौसम भी
बिलकुल
ज़िन्दगी के मौसम-सा लगता है...
भटकते बंजारे से
दहकते आवारा दिन
और
विरह में तड़पती जोगन-सी
सुलगती लम्बी रातें...
काश!
कभी ज़िन्दगी के आंगन में
आकर ठहर जाए
बरसात का मौसम...
-फ़िरदौस ख़ान

10 टिप्‍पणियां:

  1. BAHUT SUNDAR RACHANA


    SHEKHAR KUMAWAT

    http://rajasthanikavitakosh.blogspot.com/

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  2. अभी तो तपन ही तपन है अगन है और जलन है -बरखा बहार तो बहुत दूर है -अच्छी कविता !

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  3. वाह ....Firdaus जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!

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  4. काश ज़िन्दगी के आंगन में
    आकर ठहर जाये... बरसात का मौसम
    आपका लेखन, ये शैली....और शब्दों को इतने खूबसूरत अंदाज़ में पेश करने का फ़न....
    आपकी नज़्मों का इंतज़ार करने पर मजबूर कर देता है.

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  5. काश
    ज़िन्दगी के आंगन में
    आकर ठहर जाए
    बरसात का मौसम...

    मोहतरमा, जवाब नहीं आपका. शाहिद साहब से सहमत हैं.....
    हमें भी आपकी नज़्मों का बेसब्री से इंतज़ार रहता है.....

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  6. माहिर हैं आप नज़्म कहने के फन में खुबसूरत बातें करतीं है आप अपनी नज्मों में और तभी सही है के आप बातें वो करें जो आम इंसान तक आपकी बातें पहुंचे!
    आपको badhaaee...

    अर्श

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  7. काश!
    कभी ज़िन्दगी के आंगन में
    आकर ठहर जाए
    बरसात का मौसम...
    हमेशा की तरह आपका सबसे जुदा अंदाज़.....
    हम जब भी आपकी नज़्में पढ़ते हैं.....
    बेचैन हो उठते हैं....और यह बेचैनी एक लंबे अरसे तक महसूस करते हैं....

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  8. क्या बात है! आज फेसबुक पर अविनाश वाचस्पतिजी ने यह नज्‍म लगाई थी, वहीं से पीछा करते-करते यहां तक आ गई। बहुत बढ़िया..

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