मैं लफ्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी हूं...
Main Lafzon Ke Jazeere Ki Shahzadi Hoon...میں لفظوں کے جزیرے کی شہزادی ہوں
शनिवार, नवंबर 23, 2013
उदासी...
हर दिन उगता है
उदासियों के साथ
और फिर
उसी उदासी में
खो जाती है दोपहर
गहरी उदासियों का
बोझल सफ़र
जारी रहता है
देर शाम तक
और फिर
रात भी
इन्हीं उदासियों में
डूब जाती है...
न जाने क्यों
कई दिन से
मन बहुत उदास है
काश ! तुम पास होते... -फ़िरदौस ख़ान
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
उदासी को समेटे मुस्कुराते रहना ही जीवन है :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं