शुक्रवार, नवंबर 29, 2013

चांद तारे...


रात को देर तक जागना और खुली छत पर टहलते हुए देर तक तारों को निहारना भी कितना भला लगता है... अब तो तारों से अच्छी ख़ासी जान-पहचान भी हो गई है... रात के नौ बजे कौन-सा तारा कहां होगा... फिर एक घंटे बाद... दो घंटे बाद या फिर तीन घंटे बाद वह सरक कर कहां चला जाएगा... सब जान गए हैं... दिन गुज़रने के साथ-साथ आसमान में तारों में बदलाव भी देखने को मिलता रहता है... कभी आसमान में बहुत से तारे नज़र आते हैं, तो कभी बहुत कम... और चांद... चांद के तो कहने ही क्या... पहले बढ़ता चला जाता है, और जब उसकी आदत हो जाती है... तो घटने लगता है... और फिर कहीं जाकर छुप जाता है... किसी हरजाई की तरह... लेकिन तारे हमेशा रहते हैं, जब तक बादल बीच में न आएं...

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