पानदान अब बहुत कम देखने को मिलते हैं. हमारे बचपन में नहिनाल और ददिहाल के सभी घरों में पानदान होते थे. हमारे घर में भी दो पानदान थे. एक दादी जान का पानदान था, जिसमें कत्था, चूना, सुपारी और तम्बाक़ू होता था. पानदान के पास एक डलिया रखी रहती थी, जिसमें एक गीले कपड़े में लिपटे हुए पान रखे रहते थे. अम्मी का पानदान सन्दूक़ में रखा रहता था. वह आज भी सन्दूक़ में ही रखा है. कभी-कभार उसे देख लेते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान
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