मंगलवार, अगस्त 17, 2021

नजूमी


यही लम्हें तो ज़िन्दगी का हासिल हैं... साल 2016 का वाक़िया है...
गर्मियो का मौसम था... सूरज आग बरसा रहा था... एक रोज़ दोपहर के वक़्त हमें एक नजूमी मिला... उसकी बातों में सहर था... उसके बात करने का अंदाज़ बहुत दिलकश था... कुछ ऐसा कि कोई परेशान हाल शख़्स उससे बात करे, तो अपनी परेशानी भूल जाए... उसकी बातों के सहर से ख़ुद को जुदा करना मुश्किल था... 
उसने हमसे बात की... कुछ कहा, कुछ सुना... यानी सुना कम और कहा ज़्यादा... क्योंकि वह सामने वाले को बोलने का मौक़ा ही नहीं देता था... और सुनने वाला भी बस उसे सुनता ही रह जाए...
उसके बात करने का अंदाज़ कुछ ऐसा होता था कि इंसान चांद की तमन्ना करे, तो वो उसे अहसास करा दे कि चांद ख़ुद उसके आंचल में आकर सिमट जाए...
चांद तो आसमान की अमानत है, भला वह ज़मीन पर कैसे आ सकता है... ये बात सुनने वाला भी जानता है और कहने वाला भी...
लेकिन चांद को अपने आंचल में समेट लेना का कुछ पल का अहसास इंसान को वो ख़ुशी दे जाता है, जिसे लफ़्ज़ों में बयां नहीं किया जा सकता... चांद को पाने के ये लम्हे और इन लम्हों के अहसास की शिद्दत रूह की गहराइयों में उतर जाती है...
उसने हमसे चंद अल्फ़ाज़ कहे... उसकी बातें सुनकर ऐसा लगा, जैसे किसी ने हमें उदासियों की गहरी खाई से निकाल कर आसमान की बुलंदी पर पहुंचा दिया है... हमारी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था... उस रात ख़ुशी की वजह से हम सो नहीं पाये...
किसी ने उसके बारे में कहा कि वह अव्वल दर्जे का झूठा और मक्कार है... हो सकता है कि वह नजूमी झूठा हो और मक्कार हो, लेकिन उसने हमें ख़ुशी के वो लम्हे दिए, जिसके लिए हम ताउम्र उसके शुक्रगुज़ार रहेंगे...
हमने सोचा कि हम उस नजूमी को हमेशा याद रखेंगे, जिसने हमें वो ख़ुशी दी, जिसके लिए हम न जाने कितनी सदियों से तरस रहे थे... सदियों से, हां सदियो से, क्योंकि इंतज़ार के लम्हे तो सदियों से भी भारी होते हैं... हमें जब भी नजदीक की बातें याद आतीं, हम दिल ही दिल में उसका शुक्रिया अदा करते... 
वक़्त गुज़रता गया और एक दिन नजूमी की कही बात सच हो गई... सच में आसमान का चांद ज़मीं पर उतर आया था... यूं लगा जैसे सदियों की प्यासी धरती पर झूम के सावन बरसा हो... और उसकी ख़ुनकी (ठंडक) हमारी रूह तक में उतर आई... हमारी रूह मुहब्बत से मुअत्तर हो गई...
सच! हमने ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदलते देखा है... 
अल्लाह का जितना भी शुक्र अदा करें, कम है... 
शुक्रिया! मेरे मोहसिन नजूमी,  शुक्रिया 🌺
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें