मंगलवार, अप्रैल 30, 2024

उस रोज़ हम भी महिला दिवस मनाएंगे...


कल महिला दिवस है... एक तरफ़ देशभर में कार्यक्रम होंगे और महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर लंबे-चौड़े भाषण दिए जाएंगे... और दूसरी तरफ़ महिला दिवस से अनजान करोड़ों ग़रीब महिलाएं हर रोज़ की तरह सूरज निकलने से पहले उठेंगी... घर का काम-काज करेंगी... दोपहर के लिए रोटी बांधेंगी और फिर मज़दूरी के लिए निकल पड़ेंगी... कोई अपने दूधमुंहे बच्चे को पीठ से बांधकर ईंटें, मिट्टी, रेत, क्रैसर ढोएगी, तो कोई सड़क पर ही अपने बच्चे को बिठाकर पत्थर तोड़ेगी... फिर शाम को दिहाड़ी के पैसों से आटा, दाल, सब्ज़ी ख़रीदेगी और घर जाकर चूल्हा-चौका संभाल लेगी... दिन-रात के चौबीस घंटों में से अट्ठारह घंटे उसे काम करना है... वो भी एक दिन, एक हफ़्ता, एक महीना या एक साल नहीं, बल्कि ज़िंदगी भर... यानी जब तक उसके जिस्म में जान है, उसे काम करना है...
बहुत क़रीब से देखा है, इन मेहनतकश महिलाओं को... जिस रोज़ ऐसी एक भी मेहनतकश महिला के लिए कुछ कर पाएंगे, यक़ीनन उस, रोज़ हम भी महिला दिवस मनाएंगे...

चित्र : गूगल से साभार

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