बुधवार, अक्टूबर 09, 2013

समन के साये...


मेरे महबूब !
इसी तपती हुई धूप में
चलकर
आ सकते हो,
तो आ जाओ,
क्योंकि
मेरे घर की राह में
समन के घने साये नहीं मिलते...
फ़िरदौस ख़ान

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